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गया : पितृ दीपावली : पितराें के स्वर्ग जाने का मार्ग हाे जाता है राेशन
गया : आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) त्रयाेदशी तिथि काे गयाजी में पितृ दीपावली मनायी जाती है. देश-विदेश से आये पिंडदानी इस दिन शाम में अपने पितराें के लिए घी के दीये जलाते हैं आैर खूब आतिशबाजी हाेती है. विष्णुपद मंदिर, देवघाट व फल्गु नदी दीपाें से राेशन हाे जाती है. लाेग इसके लिए दीये काे […]
गया : आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) त्रयाेदशी तिथि काे गयाजी में पितृ दीपावली मनायी जाती है. देश-विदेश से आये पिंडदानी इस दिन शाम में अपने पितराें के लिए घी के दीये जलाते हैं आैर खूब आतिशबाजी हाेती है. विष्णुपद मंदिर, देवघाट व फल्गु नदी दीपाें से राेशन हाे जाती है. लाेग इसके लिए दीये काे तरह-तरह से सजाते हैं.
रंगाेली भी बनाते हैं. फल्गु की धारा में दीपदान किया जाता है. इससे कलकल करती नदी की धारा में जगमगाहट देखने काे मिलती है. इसके पीछे की मान्यता के संबंध में गयापाल पंडाजी महेश लाल गुपुत व पंडाजी अमरनाथ झंगर से जब ‘प्रभात खबर’ ने बात की ताे उन्हाेंने बताया कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयाेदशी से ही दीपावली शुरू हाे जाती है. धनतेरस, देव दीपावली(छाेटी दीपावली) आैर फिर दीपावली इसीलिए त्रयाेदशी की तिथि ही आश्विन कृष्ण पक्ष में भी रखा गया है. तिथि गुजरने के साथ पितृपक्ष मेला भी समापन की आेर है.
ऐसे में महज तीन दिन मेला संपन्न हाेने में शेष है. हर साल त्रयाेदशी काे पितृ दीपावली मनायी जाती है. ऐसी मान्यता है कि अमावस्या के दिन हाेते-हाेते जिनके लिए पिंडदान-तर्पण किया जा रहा हाेता है, उन्हें स्वर्ग लाेक(परमधाम) की प्राप्ति हाेती है. स्वर्ग लाेक जाने के मार्ग राेशन रहें, इस उद्देश्य से पितृ दीपावली कर उत्सव मनाया जाता है.
यह भी माना जाता है कि इस दिन सभी पितर भू-लाेक में आकर इस उत्सव का आनंद उठाते हैं. इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि कर्ता के जीवन में भी अंधेरा मिटकर प्रकाश फैले, इसका आशीर्वाद उनके पितर देते हैं. ऐसे में पितर व कर्ता दाेनाें के मार्ग में राेशनी फैलती है.
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