सर्दी-खासी को हल्के में न लें

गया: मौसम के बदलने से बच्चे कै-दस्त (डायरिया), पीलिया (जांडिस), सर्दी, खांसी व बुखार, टाइफाइड व दिमागी बुखार की चपेट में आ सकते हैं. बच्चों की बीमारियों को हल्के में नहीं लें. खास कर सर्दी-खांसी में लापरवाही बरतने पर बच्चे दिमागी बुखार के शिकार हो सकते हैं. ये बातें नवजात शिशु व शिशु रोग विशेषज्ञ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:48 PM

गया: मौसम के बदलने से बच्चे कै-दस्त (डायरिया), पीलिया (जांडिस), सर्दी, खांसी व बुखार, टाइफाइड व दिमागी बुखार की चपेट में आ सकते हैं. बच्चों की बीमारियों को हल्के में नहीं लें. खास कर सर्दी-खांसी में लापरवाही बरतने पर बच्चे दिमागी बुखार के शिकार हो सकते हैं. ये बातें नवजात शिशु व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विवेकानंद सिन्हा ने मंगलवार को ‘प्रभात खबर’ से खास बातचीत में कहीं. उन्होंने बताया कि डायरिया में लापरवाही से बच्चे की मौत हो सकती है.

ज्यादा कई-दस्त होने पर बच्चों के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है. इससे बच्च बेचैनी महसूस करने लगता है. पेशाब कम करता है, बार-बार पानी पीता है. बुखार अधिक हो जाता है. ऐसे में बीमार को पानी की जगह ओआरएस (ओरल रीहाइड्रेसन सॉल्युशन) का घोल देना चाहिए.

ओआरएस उपलब्ध नहीं रहने पर चीनी, नमक, मीठा सोडा का घोल (एक लीटर स्वच्छ पानी में एक मुट्ठी चीनी, एक चुटकी नमक व आधी चुटकी मीठा सोडा) का इस्तेमाल किया जा सकता है. बच्चों को डायरिया न हो, इसके लिए सफाई पर विशेष ध्यान दें.

डॉ सिन्हा ने बताया कि इस मौसम में कूलर का इस्तेमाल नहीं करें. यदि घर में एसी है तो तापमान 27-28 डिग्री से कम नहीं रखें. उन्होंने कहा कि बच्चों को खुली छत पर नहीं सुलाना चाहिए. इससे बच्चे सर्दी, खांसी व बुखार की चपेट में आ सकते हैं. बीमार पड़ने पर बच्चे को डॉक्टर के पास ले जायें. बच्चे को पीला पेशाब हो रहा हो, खाना कम खा रहा हो, उल्टी कर रहा हो व बुखार हो तो वह पीलिया(जांडिस) से पीड़ित हो सकता है.

यह बीमारी दूषित पानी पिलाने से होती है. इसलिए, इस मौसम में उबले पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. सालमोनेला बैक्टीरिया से टाइफाइड की बीमारी होती है. यह शरीर में प्रवेश कर आंत में सूजन पैदा कर देता है. तेज बुखार, बेचैनी, उलटी व पेट में अकड़न इसके मुख्य लक्षण हैं. इसके अलावा इस मौसम में मच्छर का प्रकोप बढ़ने से मलेरिया, फाइलेरिया व जापानी इनसेफ्लाइटिस आदि बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है, जिसकी चपेट में बच्चे आसानी से आ जाते हैं.

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