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पिंडदान के बाद दान की सुहाग पिटारी

गया: इन दिनों पितृपक्ष में देश-विदेश सहित नेपाल से गयाजी आये तीर्थयात्री अपने-अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान कर रहे हैं. सुबह से ही विष्णुपद, सीताकुंड, प्रेतशिला सहित विभिन्न पिंडवेदियों सरोवरों व फल्गु नदी के निकट पिंडदान के लिए तीर्थयात्रियों की भीड़ जुट रही है. हालांकि, दोपहर बाद श्रद्ध कर्म की गति बिल्कुल […]

गया: इन दिनों पितृपक्ष में देश-विदेश सहित नेपाल से गयाजी आये तीर्थयात्री अपने-अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान कर रहे हैं.

सुबह से ही विष्णुपद, सीताकुंड, प्रेतशिला सहित विभिन्न पिंडवेदियों सरोवरों व फल्गु नदी के निकट पिंडदान के लिए तीर्थयात्रियों की भीड़ जुट रही है. हालांकि, दोपहर बाद श्रद्ध कर्म की गति बिल्कुल धीमी पड़ जाती है. बुधवार को मातृ नवमी के दिन सीताकुंड में श्रद्ध कर्म करने का विधान था. काफी भीड़-भाड़ थी.

बैठने की जगह नहीं होने के कारण कई लोग झाड़ीनुमा जगह में भी बैठ कर पिंडदान किया. दर्जनों सुहागिन महिलाओं ने ब्राrाणों को सुहाग पिटारी दान की. मान्यता है कि इससे उनका सुहाग अक्षय रहता है. दानकर्ता सुहागिन ही स्वर्गलोक को जाती हैं. सीताकुंड वही स्थान है, जहां माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ को बालू से पिंडदान किया था. उधर, गुरुवार को गयासिर वेदी व गया कूप में पिंडदान का विधान था. बुधवार की अपेक्षा गुरुवार को भीड़ कम गयी थी. पंडों की मानें, तो शुक्रवार को एकादशी के दिन भीड़ रहेगी.

सबसे ज्यादा भीड़ अब त्रयोदशी से पूर्णिमा तक रहेगी. हालांकि, अब तक करीब साढ़े तीन लाख पिंडदानी गयाधाम पहुंच चुके हैं. गया कूप में पिंडदान से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. यहां कुएं में नारियल डाला जाता है. गया कूप वेदी व गयासिर वेदी में जगह की कमी व अंधेरा होने के कारण पिंडदानियों को काफी परेशानी ङोलनी पड़ी. गयासिर वेदी में तो पिंडों के गिर जाने के कारण फिसलन भी काफी थी. इससे तीर्थयात्री को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. साथ ही, भिखारी भी तीर्थयात्रियों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं.

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