अकस्मात् विश्वास नहीं होता…

शिवराम डालमिया हमारे बीच नहीं रहे. अकस्मात् विश्वास नहीं होता. मन मानने को तैयार नहीं. कल ही तो बात हुई थी. कुशलक्षेम पूछा था. लंबी उम्र की कामना की थी. लेकिन, पौ फटते ही सूचना मिली-‘डालमिया जी का देहांत हो गया’. सच्चाई स्वीकारनी पड़ी. कितनी देर तक बरगलाता. बड़ी मुश्किल से अपने पर काबू पाया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2014 12:14 AM

शिवराम डालमिया हमारे बीच नहीं रहे. अकस्मात् विश्वास नहीं होता. मन मानने को तैयार नहीं. कल ही तो बात हुई थी. कुशलक्षेम पूछा था. लंबी उम्र की कामना की थी. लेकिन, पौ फटते ही सूचना मिली-‘डालमिया जी का देहांत हो गया’. सच्चाई स्वीकारनी पड़ी. कितनी देर तक बरगलाता. बड़ी मुश्किल से अपने पर काबू पाया और उनके घर पहुंचा. रास्ते भर पुरानी स्मृतियां एक-एक कर सामने आ रही थीं. उनके पिताजी दो भाई थे. गंगाधर डालमिया व विश्वनाथ डालमिया. बड़े भाई स्वर्गीय गंगाधर डालमिया, जिन्हें लोग ‘मल्ली बाबू’ भी कहते थे. शिवराम डालमिया विश्वनाथ डालमिया के पुत्र थे. तीन मार्च, 1946 को जन्मे शिवराम डालमिया गया की धरती पर पले-बढ़े. व्यापारिक कायार्ें के अतिरिक्त गयाधाम के चहुंमुखी विकास के लिए हमेशा तत्पर रहे. धार्मिक व सामाजिक कार्यों में वह काफी सक्रिय थे. पिंडवेदियों की सुरक्षा की बात हो या उनका जीर्णोद्धार, हर जगह उनकी भूमिका सराहनीय रही. उनका परिवार भी उन्हीं के नक्शे कदम पर है. वह अपने भाइयों के लिए पे्ररणस्रोत रहे. उनकी पत्नी उषा डालमिया हमेशा उनके साथ रहीं. अर्द्धागिंनी होने के मतलब को विभूषित किया. उनकी बेटियां भी उन्हीं की तरह संस्कारवान हैं. शिवराम डालमिया हमलोगों से विदा हो गये हैं, किंतु गयाधाम का कण-कण उनकी स्मृति को सदा संजोये रहेगा. गोवर्द्धन प्रसाद सदय, साहित्यकार

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