गया: शहर में धड़ल्ले से ‘जहर’ के रूप में बिक रहे पॉलीथिन की आपूर्ति दिल्ली, गुजरात व मुंबई होती है. इसके लिए व्यवसायी सरकार को ही दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार ने 40 माइक्रोन से नीचे के पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाया है, तो फिर फैक्टरियों में इनका निर्माण क्यों होता है? इसे बंद क्यों नहीं किया जाता? व्यवसायियों का कहना है कि सरकार सिर्फ नियम बनाती है.
उनके अनुपालन की व्यवस्था नहीं करती. पॉलीथिन का उत्पादन ही रोक दें, तो फिर यह अपने-आप मार्केट से गायब हो जायेगा. शुक्रवार को हमने इस संबंध में शहर के पॉलीथिन बैग बेचनेवाले थोक दुकानदारों से बातचीत की.
विकल्प दे सरकार
व्यवसायियों का कहना है पॉलीथिन बंद भी कर दिया जाये, तो पहले सरकार को उसका विकल्प तैयार करना होगा. इसके लिए वह पूरी तरह सरकारी तंत्र को ही दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि पॉलीथिन बंद करने के साथ ही अगर सरकारी स्तर पर उसके विकल्प की व्यवस्था की गयी होती, 40 माइक्रोन से नीचे के पॉलीथिन का उत्पादन रोक दिया जाता, तो यह समस्या ही नहीं आती. सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया. इसी कारण इसका दायरा बढ़ा. विकल्प बना होता, तो सभी व्यवसायी उसी का व्यापार करते. शहर के पॉलीथिन व्यवसायी भी एक नागरिक होने के नाते 40 माइक्रोन के नीचेवाले पॉलीथिन पर रोक लगने को उचित मानते हैं.