पैसों के चक्कर में बहक रहे शहरी किशोर

गया: आधुनिकता की चकाचौंध में कम उम्र के बच्चे समाज की मुख्यधारा से भटक रहे हैं. आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने की प्रवृत्ति इनमें तेजी से पनप रही है. बस, पैसे के चक्कर में ये किशोर अपने घर-परिवार और स्कूल-कॉलेज को बदनाम कर रहे हैं. हाल में पुलिस ने ऐसी कई घटनाओं का खुलासा किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 17, 2015 8:37 AM
गया: आधुनिकता की चकाचौंध में कम उम्र के बच्चे समाज की मुख्यधारा से भटक रहे हैं. आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने की प्रवृत्ति इनमें तेजी से पनप रही है. बस, पैसे के चक्कर में ये किशोर अपने घर-परिवार और स्कूल-कॉलेज को बदनाम कर रहे हैं. हाल में पुलिस ने ऐसी कई घटनाओं का खुलासा किया है, जिनसे शहर में होनेवाली ढेर सारी आपराधिक वारदातों में किशोरवय अपराधियों की भागीदारी का पता चल रहा है.
पुलिस की तफ्तीश में जो बातें सामने आ रही हैं, उनके मुताबिक ये बाल अपराधी मुख्यतया शहर की उन सड़कों पर लूट व छिनताई जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, जहां शाम होते ही लोगों आवाजाही कम हो जाती है. ये महिलाओं व लड़कियों को अपना शिकार बना रहे हैं. शहर में मोटरसाइकिल चोरी की घटनाओं में भी ऐसे लड़कों के हाथ देखे जा रहे हैं.
पुलिस की गिरफ्त में कई किशोर
विगत रविवार को रामपुर थाने की पुलिस ने शहर के प्रतिष्ठित निजी स्कूलों में पढ़नेवाले नौवीं व 10वीं कक्षा के चार छात्रों को पकड़ा. इनके पास से चोरी के 12 मोबाइल फोन मिले. दो मोटरसाइकिलें भी मिलीं. करीब 15 दिन पहले भी सिविल लाइंस थाने ने मोटरसाइकिल चोरी के आरोप में कम उम्र के दो युवकों को चोरी की मोटरसाइकिल के साथ गिरफ्तार किया था. इनके पास से मोटरसाइकिल का लॉक खोलनेवाले औजार भी बरामद किये गये थे, जिससे पता चलता है कि कम उम्र के ये अपराधी बकायदे ट्रेनिंग लेकर अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा रहे हैं.
मनोचिकित्सक की राय
कम उम्र के बच्चों द्वारा गलत राह पकड़ने के मामले पर मनोचिकित्सक डॉ चौधरी लक्ष्मी नारायण बताते हैं कि पहले की अपेक्षा अब समय व जीवन में काफी बदलाव आ गया है. चारों ओर आधुनिकता की चकाचौंध है. इसमें बच्चे फंसते जा रहे हैं. दिनों-दिन टेक्नोलॉजी बढ़ रही है. अभिभावक चाह कर भी अपने बच्चों को टेक्नोलॉजी से दूर नहीं रख सकते. अब टेक्नोलॉजी बच्चों के जीवन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है.
इसके जरिये उम्र की एक निश्चित समय-सीमा के पहले ही बच्चे मैच्योर हो जा रहे हैं. इनकी महत्वाकांक्षा बढ़ रही है. इसके साथ ही इनके लिए पैसे की जरूरतें बढ़ती हैं. पर, ये बच्चे जिस अर्थव्यवस्था के हिस्सा होते हैं, वहां पैसे के अभाव के चलते ये जल्दी ही गलत राह पकड़ लेते हैं.
एक आइपीएस अधिकारी की सलाह
पूर्व मगध डीआइजी प्रवीण वशिष्ठ की राय में अगर संभव हो तो प्रतिदिन बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए उनके अभिभावक खुद स्कूल जायें. बच्चों से खुल कर बातें करे. बच्चों से किसी प्रकार की बात छिपाने पर उनके मन में उस बात को जानने की जिज्ञासा बढ़ती है. उससे वे गलत राह पकड़ सकते हैं. श्री वशिष्ठ के अनुसार, बच्चों का दिल नाजुक होता है. उसे किस रूप में परिवर्तित करना है, यह अभिभावक पर निर्भर करता है. बच्चों से जितना दूर भागेंगे, बच्चे अभिभावक से उतनी ही दूरी बढ़ाते जायेंगे. फिर इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे.

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