नये आयुक्त से आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज को हैं कई उम्मीदें, 2009 से ही नामांकन पर रोक
गया: 1972 में स्थापित गया के आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्टरी (बीएएमएस) कर अब तक एक हजार से अधिक लोग डॉक्टर बन चुके हैं. लेकिन, 2009 से इस कॉलेज में बीएएमएस में नामांकन पर रोक लगी है. यह रोक सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद) ने प्राचार्य समेत सभी 30 […]
इस कारण न तो योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो पायी और न ही कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारियों का वेतन भुगतान हो सका. कॉलेज के सामान्य कोष में 1.9 करोड़ रुपये, विकास कोष में 13 लाख रुपये व छात्र कोष में 2.5 लाख रुपये उपलब्ध रहने के बाद भी कर्मचारियों का 130 महीने का वेतन लंबित है. इस दिशा में पूर्व आयुक्त आरके खंडेलवाल कोई पहल करने की बजाय शासी निकाय की जिम्मेवारी से मुक्ति के लिए प्रयासरत रहे. उन्होंने कॉलेज के शासी निकाय के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी से मुक्त करने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध भी किया था, जो विचार-विमर्श के बाद अस्वीकृत हो गया. लेकिन, तब तक उनका तबादला हो गया. अब सभी की निगाह नयी आयुक्त वंदना किनी पर है. कॉलेज का भविष्य वह कितना संवार पाती हैं, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.
1981 में बिहार प्रदेश चिकित्सा विनियमन एवं अधिनियम आने के बाद प्रबंधन की पूरी शक्ति स्वत: बिहार सरकार के हाथों में चली गयी. 11 सदस्यीय शासी निकाय का गठन किया गया, जिसमें प्रमंडलीय आयुक्त को पदेन अध्यक्ष बनाया गया. सचिव मनोनयन की शक्ति भी अध्यक्ष में निहित है. नामांकन से होनेवाली आय के मुख्य स्नेत पर नियंत्रण का अधिकार संयुक्त रूप से सचिव व प्राचार्य को मिला. हालांकि, इससे पहले 1974 में ही सीसीआइएम (सेंट्रल कौंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन) से 40 सीटों पर बीएएमएस में नामांकन की मान्यता मिल चुकी थी. इस प्रकार इस कॉलेज से अब तक एक हजार से ज्यादा लोग बीएएमएस की डिग्री प्राप्त कर डॉक्टर बने चुके हैं. 2008-09 में अंतिम बैच का दाखिला हुआ. उसके बाद से अब तक नामांकन पर रोक है.