गुजरते वक्त के साथ बदलती रही गया की पहचान

गया : बिहार का मगध क्षेत्र प्राचीनकाल से ही गौरवशाली रहा है. 24 जैन र्तीथकरों में से करीब 22 र्तीथकरों की पावन भूमि मगध ही रही है. कपिलवस्तु (नेपाल) के राजकुमार सिद्धार्थ को भी यहीं बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वह भगवान बुद्ध कहलाये. अगर यह सच नहीं होता, तो आज विश्व केकोने-कोने में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2015 1:12 AM

गया : बिहार का मगध क्षेत्र प्राचीनकाल से ही गौरवशाली रहा है. 24 जैन र्तीथकरों में से करीब 22 र्तीथकरों की पावन भूमि मगध ही रही है. कपिलवस्तु (नेपाल) के राजकुमार सिद्धार्थ को भी यहीं बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वह भगवान बुद्ध कहलाये. अगर यह सच नहीं होता, तो आज विश्व केकोने-कोने में बुद्ध के उपासकों का विस्तृत महाजाल नहीं फैला होता और न ही अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बोधगया होता. इतिहास में भी उल्लेख है कि मगध सम्राट राजा अशोक की पुत्री संघमित्र व पुत्र महेंद्र ने भी सिंहलद्वीप (श्रीलंका) में बुद्ध के उपदेशों को घर-घर तक पहुंचाया था और पूरे विश्व में बंधुत्व, एकता व आपसी सद्भाव का प्रचार-प्रसार कराया था. मगध की सांस्कृतिक नगरी ‘गया’ जो कालांतर में आलमगीरपुर, साहेबगंज व अलाहाबाद आदि नामों से जानी गयी.

गया का पौराणिक नाम आलमगीरपुर है.
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण गया के नक्शे, नगर निगम, अंचल व रजिस्ट्री ऑफिस में मिलेगा, जहां आज भी रसीद आलमगीरपुर नाम से कटती है. शहर की जमीन की रजिस्ट्री के कागजात में आलमगीरपुर ही लिखा मिलेगा. कई उत्थान-पतन को ङोलनेवाली गौतम बुद्ध, महावीर व भगवान विष्णु की पावन भूमि गया आज अगर इतने वर्षो बाद भी अपनी गौरवशाली संस्कृति को बचा पाने में सफल है, तो यह उसकी अपनी विशेषता ही मानी जायेगी. कभी इसी शहर को गयापाल शहरचंद ने आलमगीरपुर नामक सांस्कृतिक नगर का निर्माण करवाया था और अपनी सांस्कृतिक उदारता का परिचय दिया था. गया शहर की पूर्व पीठिका पर रोशनी डालें, तो पता चलता है कि 10वीं शताब्दी में मगध की सांस्कृतिक भूमि ‘गया’ को एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान के रूप में स्वीकार कर लिया गया था. इससे पहले आठवीं शताब्दी तक गया को केवल स्थानीय महत्व ही प्राप्त था. उस काल में यहां लगभग 1000 ब्राrाण परिवार थे, जो खुद को गयावाल घोषित कर चुके थे. इस बात का जिक्र चीनी यात्री ह्लेनसांग ने भी अपनी यात्र वृतांत में किया है.
उस समय ह्लेनसांग ने इस शहर को निहायत एक हिंदू शहर के रूप में पाया था. इससे पहले चीनी यात्री फाहियान के अनुसार, यह इलाका पूर्णत: जन शून्य व मरुभूमि के समान था. आगे चल कर 11वीं शताब्दी के अंतिम दशक के पहले कुछ यहां के गयावाल व उनके द्वारा संपन्न कराये जानेवाले श्रद्ध जैसे शास्त्रोक्त धार्मिक अनुष्ठान को लोकप्रियता मिल चुकी थी. लेकिन, जिस समय गयावालों को प्रमुखता मिली, ठीक उसी समय यहां के गयावालों व मुसलमानों के बीच एक जातीय विद्वेष व असहिष्णुता की भावना भी उभरी.

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