एक नहीं, सामने आये दो-दो एकलव्य
गया: कहते हैं सीखने की न तो कोई उम्र होती है और न ही कोई शॉर्टकट तरीका. इसके लिए आर्थिक स्थिति भी जिम्मेवार नहीं है. अगर, मन में ललक व लगन हो तो. इसी बात को चरितार्थ कर रहे हैं, ऐसे दो बच्चे, जिनकी उम्र में बच्चे अक्सर दादी-नानी की कहानियां सुनते हैं, गुल्ली-डंडा खेलते […]
गया: कहते हैं सीखने की न तो कोई उम्र होती है और न ही कोई शॉर्टकट तरीका. इसके लिए आर्थिक स्थिति भी जिम्मेवार नहीं है. अगर, मन में ललक व लगन हो तो. इसी बात को चरितार्थ कर रहे हैं, ऐसे दो बच्चे, जिनकी उम्र में बच्चे अक्सर दादी-नानी की कहानियां सुनते हैं, गुल्ली-डंडा खेलते हैं, गलियों में क्रिकेट खेलते हैं. लेकिन शहर के रामधनपुर, पीपल गली निवासी सुमित कुमार व उसका भाई प्रियांशु राव कला के ऐसे वाहक, जो क्रमश: 12 व नौ वर्ष की उम्र में अपनी प्रतिभा से न सिर्फ अपने परिवार का, बल्कि शहर का भी नाम रोशन कर रहे हैं.
दरअसल, ये दोनों बच्चे उस एकलव्य के प्रतिरूप हैं, जिसने बिना गुरु के सीखने का एक मानक तय किया था. लेकिन वर्तमान में हालात बदल चुके हैं. आज न तो गुरु द्रोण हैं, न ही गुरुकुल. लेकिन परंपरा आज भी कायम है. सीखने व सिखाने की प्रक्रिया यथावत है. लेकिन, जिस हालात से ये दोनों बच्चे गुजर रहे हैं, उससे एकलव्य की कहानी एक बार फिर जीवंत हो जाती है. सुमित छठी कक्षा का छात्र है और शहर के ही लिटिल एंगल एकेडमी में पढ़ता, वहीं प्रियांशु प्री एंगल्स स्कूल में एलकेजी का छात्र है. सुमित के पिता मनोज राव व प्रियांशु के पिता संजय राव दुकान में काम करते हैं.
सुमित की मां आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत हैं. सुमित व प्रियांशु पिछले दो साल से दुर्गापूजा को लेकर स्वयं मां दुर्गा की प्रतिमा बना कर पूजा करते आ रहे हैं. पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि इस कला को सीखने के लिए उन्होंने किसी गुरु का सहारा नहीं लिया. बल्कि मूर्तिकारों के दुकान के बाहर खड़े हो कर उनकी कला को ध्यानपूर्वक देखा व उसे अपने घर पर करने का प्रयास किया.
साथ ही आसपास के लोगों व अन्य जानकारों से उसने मूर्ति बनाने में उपयोग होनेवाली वस्तुओं की दुकानों के बारे में जानकारी हासिल कर सामान इकट्ठा करने के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण किया. उसने बताया कि इस मूर्ति को बनाने में उसे लगभग तीन सप्ताह का समय लग गया. उसकी कला को देखने के लिए आसपास के लोगों की भीड़ उसके घर में जुट रही है. लोग उनकी बनायी मूर्ति को देख प्रशंसा कर रहे हैं.