सृष्टि के आरंभ से हो रही सूर्योपासना

सृष्टि के आरंभ से हाे रही सूर्याेपासनासृष्टि के आरंभ से ही सूर्य की उपासना हाेती चली आ रही है. मनुष्य ने जब आंख खाेली, तब उसे प्रत्यक्ष देवता के रूप में सूर्य ही दिखाई पड़े. इसीलिए, वेदाें में भी पहली अर्चना सूर्य काे ही समर्पित की गयी है. इंद्र आदि देवाें की कल्पना बाद में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2015 10:12 PM

सृष्टि के आरंभ से हाे रही सूर्याेपासनासृष्टि के आरंभ से ही सूर्य की उपासना हाेती चली आ रही है. मनुष्य ने जब आंख खाेली, तब उसे प्रत्यक्ष देवता के रूप में सूर्य ही दिखाई पड़े. इसीलिए, वेदाें में भी पहली अर्चना सूर्य काे ही समर्पित की गयी है. इंद्र आदि देवाें की कल्पना बाद में की गयी. पद्म पुराण में उल्लेख आया है कि वेदाें तथा अन्य देवताआें ने भी अगर किसी की वंदना की है, ताे वह सूर्य देव ही हैं. जहां तक मगध की बात है, तो सूर्याेपासना मगध की विशेष पूजा मानी जाती है. मगध क्षेत्र व विशेषकर गया में जितने सूर्य मंदिर हैं, उतने अन्यत्र नहीं हैं. गयाजी का ही देव व उमगा, जाे अब गया से अलग हाेकर आैरंगाबाद जिले का हिस्सा बन गया है, का सूर्य मंदिर अत्यंत विशिष्ट व प्राचीन है. इस मंदिर के साथ कई लाेकाेक्तियां भी जुड़ गयी हैं. कहा जाता है कि जब बख्तियार खिलजी ने हिंदू मंदिराें काे ताेड़ना व नष्ट-भ्रष्ट करना चाहा, तब उसकी कुदृष्टि आैरंगाबाद के देव स्थित सूर्य मंदिर पर भी पड़ी. उसने मंदिर तोड़ने का लाख प्रयत्न किया, किंतु वह मंदिर आज भी वर्तमान है. इस मंदिर की ऐसी स्थिति है कि आज भी दूर-दूर से लाेग वहां आते हैं और तंबू तान कर पूरे चार दिन (छठ पर्व) तक यहां सूर्याेपासना करते हैं. यहां सूर्यमंदिर के पास में जाे जलकुंड है, उसमें स्नान करने से कुष्ठ आदि राेग भी समाप्त हाे जाते हैं. गया नगर स्थित सूर्यकुंड तथा उसके पास में भगवान सूर्य का विग्रह इस बात का प्रमाण है कि यहां प्राचीन काल से सूर्याेपासना हाेती रही है. यह परंपरा अब हमारी भारतीय संस्कृति का अंग बन गयी है. छठ पर्व के अवसर पर हम सभी लाेग भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भगवान सूर्य काे नमस्कार करते हैं. डूबते सूर्य काे पहले व फिर उगते सूर्य काे अर्घ देते हैं. अर्थात् हम प्राचीन करके बूढ़े-बुजुर्गाें काे ताे मान्यता देते हैं, उगते सूर्य से नयी ऊर्जा तथा प्रेरणा भी प्राप्त करते हैं. -गाेवर्द्धन प्रसाद सदय

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