विशेष महत्व है मोरहर नदी तट के सूर्य मंदिर का फोटो कैप्सन: प्रतिनिधि, टिकारीउत्तर वाहिनी मोरहर नदी के तट पर पांच सौ साल पुराने सूर्य देवता का मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. मंदिर की बनावट व नक्काशी बेजोड़ है. मंदिर के निर्माण में गदहिया ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है. मान्यता है कि मंदिर का निर्माण राजाकाल के समय करवाया गया था. मंदिर में प्रवेश करने पर भगवान भास्कर का दर्शन होता है. मंदिर के बीच में शिवलिंग की स्थापना की गयी है. मंदिर के गर्भगृह में अति दुर्लभ व प्राचीन काले पत्थर की चार फुट की मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित की गयी थी, जिसे 35 वर्ष पहले चोरों द्वारा चोरी कर ली गयी थी. मंदिर में अब भी कई कीमती पत्थर की विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं. मंदिर का मुख्य द्वार चंदन की लकड़ी से बना है. सेवा भारती प्रमुख रामनरेश प्रसाद ने बताया कि मंदिर की खुदाई करने पर पक्की सीढ़ी दिखायी देती है, जो नीचे से होकर सीधे तालाब की ओर जाती है. सूर्य व शिव प्रतिमा एक साथ होने का अलग महत्व सूर्य व शिव प्रतिमा एक मंदिर में विराजमान होना अलग महत्व रखता है. इस तरह के मंदिर में छठ व्रत करने की मान्यता है कि सूर्य व शिव मंदिर एक साथ होनेवाले स्थल पर अर्घ देने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है. सेवा भारती प्रमुख ने बताया कि विगत वर्ष हाजीपुर, आरा, भोजपुर व औरंगाबाद से आकर इस मंदिर में श्रद्धालुओं ने छठ व्रत का अनुष्ठान किया था. मंदिर में छठव्रतियों को रहने के लिए विवाह मंडप बना है, जिसमें लगन के दिनों में भारी संख्या में शादियां भी होती हैं. प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यहां शौचालय व पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. श्री प्रसाद ने बताया कि व्रतियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी सेवा भारती की होती है. मंदिर के घाटों पर बेहतर व्यवस्था के लिए सेवा भारती, बजरंग दल, समाज सेवा संघ व युवा क्लब, शेरपुरा तत्पर रहते हैं. इनके अलावा बेल्हड़िया पंचायत के सरपंच रामाशीष प्रजापति व अन्य समाजसेवी भी तत्पर रहते हैं.
विशेष महत्व है मोरहर नदी तट के सूर्य मंदिर का
विशेष महत्व है मोरहर नदी तट के सूर्य मंदिर का फोटो कैप्सन: प्रतिनिधि, टिकारीउत्तर वाहिनी मोरहर नदी के तट पर पांच सौ साल पुराने सूर्य देवता का मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. मंदिर की बनावट व नक्काशी बेजोड़ है. मंदिर के निर्माण में गदहिया ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है. मान्यता है […]
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