उम्र झट उड़ जायेगा, जीवन खिलौना है..

उम्र झट उड़ जायेगा, जीवन खिलौना है..जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य चक्र के तहत काव्य संध्या आयोजित कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को कभी गंभीर बनाया, तो खूब गुदगुदाया संवाददाता, गयाजिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य चक्र के तहत काव्य संध्या का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सभापति गोवर्द्धन प्रसाद सदय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2016 10:55 PM

उम्र झट उड़ जायेगा, जीवन खिलौना है..जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य चक्र के तहत काव्य संध्या आयोजित कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को कभी गंभीर बनाया, तो खूब गुदगुदाया संवाददाता, गयाजिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य चक्र के तहत काव्य संध्या का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सभापति गोवर्द्धन प्रसाद सदय ने की. काव्य संध्या का शुभारंभ डॉ सुधांशु ने गयाजी की वंदना ‘धन्य धरा में गयाधाम की धरती’ से किया. गीतकार संजीत कुमार ने गाया-किसने गुलशन में आग लगायी है, फिर वही काली रात आयी है. नवीन नवनीत अपने भजन में गाया-‘इक बार कहा किशन ने आकर यशोदा मइया से, रूठती हो क्यों मां अपने पुत्र कन्हैया से…’ डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने अपनी कविता में खिचड़ी की महिमा बतायी. योगेश कुमार मिश्र ने वीर जवानों को समर्पित कविता ‘तुम देश बचाना वीर मेरे…’ संजय सहियावी ने वीरों का गौरव गान इन शब्दों में किया-तोहरे त्याग तपस्या से देशवा बनल महान. जय हो भारत के जवान, करि तोहरा हम प्रणाम…’ अश्विनी ने गुरु गोविंद सिंह को अपनी काव्यांजलि दी. मुद्रिका सिंह ने सरकारी ‘बिल्लइया’ कविता में कहा-ऑफिस के बाबू बनल हथ सगरो बेकाबू, बात बात में मांगऽ हथ रुपइया. विजय कुमार सिन्हा ने कई मुक्तक पढ़े. उन्होंने कहा-वर्जनाओं में न बांधो, पल सलोना है. उम्र झट उड़ जायेगा, जीवन खिलौना है. राजीव रंजन ने अपनी घुसपैठ कविता में कहा-तुम्हारी नजरों के बलात्कार से आहत, मन को समेट कर मैं रोज नजरें झुका कर निकल जाती, फूलों भरी राह की चाह में. सुरेंद्र पांडेय सौरभ ने श्रृंगार की कविता पढ़ी-तुमकों पाने में, तुमको भुलाने में. कई सावन बरस गये साजन. डॉ मनान अंसारी ने कहा कि ख्वाब ने सियासत का दिल जवां बना डाला, चहचहाती चिड़ियों को बेजुबा बना डाला. डॉ ब्रजराज मिश्र ने नेताओं पर व्यंग्य कसे- कैसे आंख मिलाओगे तुम, जनता से वादा करनेवाले? अब कितना शरमाओगे तुम, जन-मन के भाग्य बनानेवाले. जनकवि सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने गाया कि कोई नगमा सुना जिंदगी के लिए, इक दीपक जला रोशनी के लिए… एके उलफत ने गजल में गाया-गांव भी जल रहे शहरों के साथ. सुख भरी शांति का एक लम्हा, अब कहीं नहीं जहां में. गोवर्द्धन प्रसाद सदय ने अपनी कविता बता दे कि कैसे तुझे याद आऊं पढ़ी. काव्य संध्या का संचालन सुमंत ने किया. इस अवसर पर बीटीएमसी की सदस्य डॉ कुमुद वर्मा, इंजीनियर अभिजात वर्मा व सरवर खान सहित काफी संख्या में लोग मौजूद थे.

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