घोर लापरवाही: पानी सप्लाइ की टंकियों में जीव-जंतुओं का बसेरा, घरों में आ रहा जहरीला पानी

गया: शहर के कई प्रमुख मुहल्लों में सप्लाइ होनेवाले पानी की तीनों टंकियों की हालत जर्जर है. मंगलागौरी पहाड़ी पर बनीं टंकियों के ढक्कन टूटे होने के कारण इनमें पक्षियों व अन्य जीव-जंतुओं (जैसे-छिपकली, बिच्छू, सांप व अन्य कीड़े-मकोड़े) का बसेरा बना हुआ है. इसमें कोई शक नहीं कि पक्षियों का मल-मूत्र भी पानी में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2016 7:24 AM
गया: शहर के कई प्रमुख मुहल्लों में सप्लाइ होनेवाले पानी की तीनों टंकियों की हालत जर्जर है. मंगलागौरी पहाड़ी पर बनीं टंकियों के ढक्कन टूटे होने के कारण इनमें पक्षियों व अन्य जीव-जंतुओं (जैसे-छिपकली, बिच्छू, सांप व अन्य कीड़े-मकोड़े) का बसेरा बना हुआ है.

इसमें कोई शक नहीं कि पक्षियों का मल-मूत्र भी पानी में ही गिरता होगा और सप्लाइ के पानी के साथ लोगों के घरों में पहुंचता होगा. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, इन टंकियों की दीवारों पर काई व पेड़ उग आये हैं. इसके बाद भी इस पर किसी का ध्यान नहीं गया. ताज्जुब तो यह भी है कि कई अधिकारियों को इसके बारे में पता भी नहीं है़ उक्त टंकियों का ऐसा हाल है, इसका मतलब साफ है कि इनकी वर्षों से साफ-सफाई नहीं हुई है.

1904 में बनी थी पहली टंकी : गया के पुराने लोगों ने बताया कि मंगलागौरी पहाड़ी पर पहली टंकी का निर्माण 1904 में हुआ था. बाद में 1957 में दो अन्य टंकियों का निर्माण हुआ. उनकी मानें, तो 1904 में बनी एक टंकी में कोयला जला कर पानी भरा जाता था व लोगों तक पानी की पहुंचाया जाता था. पहले टंकी की देखरेख के लिए निगम के कर्मचारी यहां पर रहते थे. अब तो दंडीबाग से पानी भरने के बाद टंकी की देखरेख करनेवाला भी कोई नहीं है. यह स्थिति वर्षों से है.
अब जरा जल पर्षद के अधिकारी की सुनें
जल पर्षद के अधिकारी का कहना है कि कर्मचारियों की कमी के कारण यहां किसी को नहीं लगाया गया है. हालांकि, टंकी के पास गार्ड रूम भी बनाया गया है. तीन टंकियाें से गया शहर के लोगों को पानी पहुंचाया जाता है. तीनों टंकियों में 1904 में टंकी की हालत एकदम जर्जर है. ढक्कन जगह-जगह से टूट गये हैं. पानी की तलाश में पक्षियों के लिए सुलभ व सरल ठिकाना है. वे पानी के लिए टंकी में ही घुस आते हैं. पानी में ही मल-मूत्र त्याग देते हैं. अब यही पानी लोगों के घरों तक पहुंचता है. पानी सप्लाइ का जिम्मा नगर निगम व पीएचइडी दोनों मिल कर करते हैं. दोनों में से किसी का इस पर ध्यान नहीं है. आश्चर्य है कि जिले में पेयजल संकट पर सभी लोगों द्वारा बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, पर अब तक इस बारे में उन्हें पता तक नहीं है.
टंकी सुधारने का होना चाहिए उपाय
टंकी के ढक्कन का स्थानीय इंजीनियर द्वारा में सुधार करना संभव नहीं है. इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े पदाधिकारियों की मानें, तो पीएचइडी द्वारा काम संभव नहीं होने पर प्रशासन को इसके सुधार के लिए आइआइटी, खड़गपुर या कानपुर से संपर्क करना चाहिए.

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