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जैसे-तैसे बिक रहे खाद्य पदार्थों पर कंट्रोल नहीं

गया: शहर में बिकनेवाले खाद्य पदार्थों पर प्रशासनिक स्तर पर कोई कंट्रोल नहीं है. जिसे जो चाहे, जैसे चाहे बेच रहा है. फुटपाथ से लेकर शहर की बड़ी दुकानों तक में सब कुछ बस ऐसे ही बिक रहे हैं. इस तरह की खाने-पीने की सामग्री यों तो हमेशा नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन गरमी व बारिश […]

गया: शहर में बिकनेवाले खाद्य पदार्थों पर प्रशासनिक स्तर पर कोई कंट्रोल नहीं है. जिसे जो चाहे, जैसे चाहे बेच रहा है. फुटपाथ से लेकर शहर की बड़ी दुकानों तक में सब कुछ बस ऐसे ही बिक रहे हैं. इस तरह की खाने-पीने की सामग्री यों तो हमेशा नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन गरमी व बारिश में खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. इस मौसम में ऐसे भोजन से डायरिया, पेट में इन्फेक्शन व अन्य कई बीमारियां हो सकती हैं. दूसरी ओर इस तरह की गड़बडी की जांच जिस विभाग के जिम्मे है, वह खुद ही बेहाल है.

न फोर्स, न ही गाड़ी कैसे होगी छापेमारी : जयप्रकाश नारायण अस्पताल में फूड सेफ्टी विभाग का कार्यालय है. यह सिर्फ कार्यालय ही है. यहां एक अधिकारी है और एक कंप्यूटर आॅपरेटर. जिले में बिकनेवाले सभी खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता इसी एक अधिकारी के जिम्मे है. विभाग के पास अपनी गाड़ी तक नहीं है और न ही छापेमारी के लिए फोर्स. ऐसे में अगर अधिकारी को कहीं जांच के लिए जाना होता है, तो वह या तो प्राइवेट स्तर पर गाड़ी का इंतजाम करता है या फिर सरकारी गाड़ी के भरोसे ही जाता है. इससे भी हैरान करनेवाली बात यह कि इस विभाग के पास अपना फोर्स नहीं है, छापेमारी पूरी तरह थाने पर निर्भर है. फोर्स मिलने पर ही छापेमारी की जाती है़.
संसाधनों की कमी, जांच में होती है मुश्किल : फूड इंस्पेक्टर अशोक सिन्हा ने कहा कि बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से ही कोई भी काम नहीं हो पाता. जांच के लिए जाने के लिए एक मोटरसाइकिल दी गयी है. पूरा जिला उसी से घूमना है. पिछले महीने दुर्घटना के बाद से वह भी चलाना मुश्किल है. उन्होंने बताया कि अब अगर जिले में कहीं भी जांच के लिए जाना होता है, तो हम बस से जाते हैं. लाइसेंस आॅथोरिटी के तौर पर पदस्थापित यहां एक और अधिकारी के साथ भी यही मुश्किल है. उनके जिम्मे तो मगध के चार जिले हैं. ऐसे में बिना संसाधन के काम करना काफी मुश्किल हो जाता है. उन्होंने बताया कि कर्मचारी के नाम पर महज एक आॅपरेटर है. सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अगर कहीं जांच के लिए जाना भी हो तो उस इलाके के थाने पर निर्भर रहना पड़ता है. फोर्स मिल भी गया, तो मुश्किल है कि उन्हें ले कर जायें कैसे. विभाग के पास गाड़ी भी नहीं है. बुनियादी सुविधाएं नहीं होने की स्थिति में कामकाज करना मुश्किल हो जाता है.

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