डीएम से समन्वय बना जानलेवा बीमारी से निबटें सभी सीएस
गया: स्वास्थ्य विभाग व यूनिसेफ के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को होटल महाबोधि में एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) की रोकथाम व बचाव की रणनीति तैयार करने के लिए प्रमंडलीय स्तर की उन्मुखीकरण कार्यशाला आयोजित की गयी. मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद प्रमंडलीय आयुक्त लियान कुंगा ने कहा कि एइएस से पीड़ित बच्चों में से […]
गया: स्वास्थ्य विभाग व यूनिसेफ के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को होटल महाबोधि में एक्यूट इनसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) की रोकथाम व बचाव की रणनीति तैयार करने के लिए प्रमंडलीय स्तर की उन्मुखीकरण कार्यशाला आयोजित की गयी. मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद प्रमंडलीय आयुक्त लियान कुंगा ने कहा कि एइएस से पीड़ित बच्चों में से 55 से 60 प्रतिशत की मौत हो जाती है, यह चिंता का विषय है. इस पर हर तरह से मंथन करना होगा. श्री कुंगा ने डाॅक्टरों व प्रशासनिक पदाधिकारियों के आपसी तालमेल को आवश्यक बताते हुए कहा कि सभी सिविल सर्जन अपने जिलाधिकारियों के समन्वय के साथ इस बीमारी से निबटने का प्रयास करें.
कार्यक्रम में मौजूद गया डीएम कुमार रवि ने कहा कि इस बीमारी का प्रभाव गया के साथ-साथ आसपास के जिलों में भी है. आमतौर पर गया में एइएस का प्रभाव अगस्त से होता है, पर इस साल जून से ही इसके केस मिलने लगे. इस कारण स्वास्थ्यकर्मियों को पूरी तैयारी करने का मौका नहीं मिला था. उन्होंने कहा कि अब तक 55 मामले सामने आये हैं. इनमें 29 अज्ञात एइएस, 13 जापानी इनसेफ्लाइटिस, चार चांदीपुरा वायरस, दो हरपिस सिंप्लेक्स वायरस व एक मलेरिया के मामले हैं. अब तक 27 बच्चों की मौत चिंता का विषय है. कार्यक्रम में मगध प्रमंडल के सभी डीएम, सिविल सर्जन, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, आइसीडीएस पदाधिकारी, जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी, जिला मलेरिया पदाधिकारी व कई डाॅक्टर भी मौजूद थे.
अरवल में रेफरल अस्पताल नहीं: अरवल के डीएम आलोक रंजन घोष ने कहा कि अरवल में रेफरल अस्पताल नहीं होने की वजह से एइएस के मामले आने पर केस को गया या पटना भेजना पड़ता है. ऐसे में बच्चों का इलाज शुरू होने में काफी वक्त लग जाता है. उन्होंने यहां रेफरल अस्पताल के होने को सबसे जरूरी बताया. उन्होंने अरवल में अब तक दो केस आये हैं. इधर, औरंगाबाद डीएम कंवल तनुज ने कहा कि औरंगाबाद में एइएस को लेकर जागरूकता अभियान व स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण भी दिया गया है. औरंगाबाद व नवीनगर में मामले आये हैं.
एक से तीन साल के बच्चों की सबसे ज्यादा मौत
बिहार में एइएस के प्रभाव के बारे में बताते हुए यूनिसेफ के हेल्थ आॅफिसर डाॅ हुबे अली ने कहा कि चांदीपुरा वायरस का केस पहली बार पाया गया है. इसके प्रभाव से बच्चों के सेंस में कमी आती है. गया में एइएस के मामलों का विश्लेषण करते हुए उन्होंने बताया कि एइएस में होनेवाली मौत में 62% बच्चे ऐसे होते हैं, जिन्हें सीधे घर से अस्पताल लाया गया है. इसके साथ ही अगर एइएस में होनेवाले बच्चों की मृत्यु की उम्र को देखते हैं, तो पाते हैं कि लगभग 42.5% फीसदी बच्चे एक से तीन साल तक के उम्र के हैं. ऐसे में इस उम्र के बच्चों के मामले में संवेदनशील होने की जरूरत है.
अधीक्षक की कोशिश को मिली सराहना
अतिरिक्त निदेशक डाॅ शर्मा ने इस साल में अब एइएस के मामले और उसके इलाज को लेकर तत्परता दिखाने के लिए मगध मेडिकल काॅलेज अस्पताल के अधीक्षक डाॅ सुधीर कुमार सिन्हा की सराहना की. कार्यक्रम में मौजूद प्रमंडल के सभी अधिकारियों ने अधीक्षक का हौसला बढ़ाया. उन्होंने कहा कि गया में अज्ञात एइएस के मामले आने के साथ ही अधीक्षक डाॅ सिन्हा ने स्वास्थ्य विभाग के साथ संपर्क करना शुरू कर दिया था. उनकी पहल पर ही आरएमआरआइ व अाइसीएमआर जैसी संस्थाओं ने जांच शुरू की. इससे कई मामले सामने आ पाये. इनमें हरपिस सिंप्लेक्स व चांदीपुरा हैं. उन्होंने कहा कि हाल में ही मेडिकल काॅलेज में एइएस के मामले की जांच करनेवाली मशीन के खराब होते ही अधीक्षक ने आरएमआरआइ से संपर्क कर वहां से जांच शुरू करायी.
तकनीकी पक्ष पर भी चर्चा
तकनीकी सत्र के दौरान पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल के प्रोफेसर व शिशुरोग विभागाध्यक्ष डाॅ निगम प्रकाश नारायण ने एइएस के इलाज और प्रबंधन की तैयारियों की स्थिति का आकलन करने के लिए संशोधित मानक संचालन प्रक्रिया की चर्चा की. नालंदा मेडिकल काॅलेज अस्पताल की एसोसिएट प्रोफेसर व शिशुरोग विभागध्यक्ष डाॅ अलका सिंह ने कहा कि लोगों को जागरूक करने व एइएस के लक्षणों की पहचान करने में किसी चिकित्सा विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह काम आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से कराया जा सकेगा.
केस में आयी है कमी
यूनिसेफ के कार्यक्रम प्रबंधक शिवेंद्र नाथ पांड्या ने कहा कि पिछले साल के एइएस के आंकड़ों को देखें, तो पायेंगे कि केसों में कमी आयी है. लेकिन एइएस के मामले में मौत के प्रतिशत में कोई कमी नहीं आयी है. 2013 में हुई 551 मौत की तुलना में इस साल अब तक केवल 46 बच्चों की मौत हुई है. श्री पंड्या ने कहा कि गया में जुलाई के पहले सप्ताह में सभी प्रखंडों के एएनएम को प्रशिक्षित किया गया है.
पीएचसी को करें मजबूत
स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक डाॅ एमपी शर्मा ने कहा कि अक्सर यह सुनने में आता है कि बच्चे को पीएचसी ले जाने के बाद उसे मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया जाता है. इस व्यवस्था को रोकना होगा. इसकी वजह से लोगों में अविश्वास पैदा होता है. उन्होंने कहा कि पीएचसी की व्यवस्था को बेहतर करें, यहां आनेवाले बीमार बच्चों का प्राथमिक इलाज करें, तभी उन्हें रेफर करें. उन्होंने कहा कि माइनर केस में भी बिना जांच किये रेफर कर देने से मेडिकल काॅलेज पर अतिरिक्त दबाव बढ़ता है.