देह का नष्ट होना जीवात्मा का नाश नहीं : शंकराचार्य
गया: दार्शनिक तथ्य है कि देह के नाश में जीवात्मा का नाश नहीं है. इसे डंके की चोट पर कहा जा सकता है. देह का नाश तो होता है, पर उसके अंदर की आत्मा नश्वर है, जिसका पिंडदान कर्म अनिवार्य है. इसको लेकर सभी वेद, पुराणों में तथ्यपूर्ण प्रमाण हैं. इसके अलावा, गया विष्णुपद में […]
गया: दार्शनिक तथ्य है कि देह के नाश में जीवात्मा का नाश नहीं है. इसे डंके की चोट पर कहा जा सकता है. देह का नाश तो होता है, पर उसके अंदर की आत्मा नश्वर है, जिसका पिंडदान कर्म अनिवार्य है. इसको लेकर सभी वेद, पुराणों में तथ्यपूर्ण प्रमाण हैं. इसके अलावा, गया विष्णुपद में पिंडदान कर्म के ठोस व तर्कसंगत प्रमाण भी हैं.
ये बातें पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने विष्णुपद मंदिर परिसर में चल रही कथा के नौवें दिन प्रवचन दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि आस्तिक, वैदिक सिद्धांत कहता है कि देह त्याग व पुर्नजन्म सुनिश्चित है. हर मनुष्य को जीव में जन्म लेना निश्चित है. मनुष्य शरीर में आने के लिए बेहतर कर्म की आवश्यकता होती है. उन्होंने स्थान की महत्ता पर खासा जोर दिया. कहा कि स्थान का बड़ा ही महत्व है. यह मैं नहीं, शास्त्र कहता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गंगा, गंगोत्री से चल कर जब हरिद्वार में पहुंचती है और जैसे ही ब्रह्म कुंड से स्पर्श पाती है, तो भव्य हो जाती है. उसका स्पर्श, पवित्रता, सौंदर्य शीतलता सब कुछ अद्भुत है. ठीक उसी तरीके से गया में श्राद्ध की भी भव्य विशेषता है. उन्होंने कहा कि स्थान का इतना महत्व है कि भगवान को भी काशी में रहने वाली हर एक स्त्री पार्वती व पुरुष शंकर ही नजर आते हैं. इसी तरह से गया की धरती भी पवित्र धरती है. इस बात के प्रमाण शास्त्रों व पुराणों में सारगर्भित तरीके से मिलते हैं, जो किसी भी तर्क व तथ्य से परे हैं. गया में ही पिंडदान कर्म करने से पितरों को सद्गति मिलती है. यह अनादि काल से चला आ रहा है. पिंडदान कर्म से पितरों को चक्रवृद्धि ब्याज की तरह वर्षों तक संतुष्टि मिलती रहती है.
जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी पर कसे तंज : करीब डेढ़ घंटे के प्रवचन के दौरान बड़े ही चुटीले अंदाज में शंकराचार्य ने दो बार जवाहर लाल नेहरू पर तंज कसे. कहा कि संसद में नेहरू ने कहा कि बंजर भूमि चीन को दी है. इस पर महावीर त्यागी ने कहा था कि मेरे सिर पर बाल नहीं हैं, तो इसे भी आप किसी को दे देंगे. नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि गौ रक्षा की बात मोदी को हजम नहीं हो रही है.
बिहार क्रांति की प्रशस्त भूमि
शंकराचार्य ने कहा कि बिहार विशेषकर मगध की धरती क्रांति की प्रशस्त भूमि रही है. हमें इस धरती से बड़ी अपेक्षा है. दस वर्ष पूर्व भी उन्होंने बुद्ध के स्रोत वाली भूमि के उत्थान व शोध की अपेक्षा जतायी थी. जिसे जिम्मेदारी दी, उन्होंने किसी वजह से पूरा नहीं किया. आज एक और जिम्मेदारी दे रहा हूं. एक ऐसी विद्यापीठ का स्वरूप तैयार किया जाये, जहां गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक मार्क्सवाद व रामराज्य के पठन-पाठन का काम सुचारु रूप से चलता रहे. इस काम की अपेक्षा उन्होंने डालमिया परिवार से जतायी.
स्वतंत्र भारत का स्वरूप कैसा हो
शंकराचार्य ने कहा कि भारत में कोई शासन तंत्र नहीं है. यहां पश्चिम जगत के इशारों पर ही अब भी शासन होता है. उन्होंने कहा कि आजादी के दीवानों के मन-मस्तिष्क में स्वतंत्र भारत का स्वरूप क्या था और आजादी के बाद के स्वतंत्र भारत का क्या स्वरूप है, इस पर गहराई से शोध होना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है, तो किसी भी नेता को चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है.
विष्णु चरण के किये दर्शन
शंकराचार्य प्रवचन के बाद विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में पहुंचे व विष्णु चरण के दर्शन किये. तुलसी अर्चना की व प्रसाद चढ़ाया. इस दौरान वे श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ के बीच घिर गये. श्रद्धालु उनके चरण स्पर्श को लालायित थे. शंकराचार्य के अनुयायी श्रद्धालुओं को चरण छूने से मना कर रहे थे. वे दूर से ही प्रणाम करने की बातें कह रहे थे, पर श्रद्धालु उनकी एक भी नहीं सुन रहे थे.