तीन कर्तव्य निभाने से मातृ-पितृऋण से मुक्ति

गया: जीवतो वाक्या करणा त् क्षयोहे भूरिभोजनात्. गयायां पिंड दानाच्य त्रिभि पुत्रस्य पुत्रता.. मानव जीवन में मातृ व पितृऋण से मुक्ति के लिए तीन कर्तव्य प्रमुख माने गये हैं. पहला जीवित में माता-पिता का सेवा सत्कार करना, दूसरा मरने के बाद भूरी (ब्राह्मण भोजन) कराना व तीसरा गया में पहुंच कर अपने माता-पिता का श्राद्ध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2016 2:50 AM
गया: जीवतो वाक्या करणा त् क्षयोहे भूरिभोजनात्. गयायां पिंड दानाच्य त्रिभि पुत्रस्य पुत्रता.. मानव जीवन में मातृ व पितृऋण से मुक्ति के लिए तीन कर्तव्य प्रमुख माने गये हैं. पहला जीवित में माता-पिता का सेवा सत्कार करना, दूसरा मरने के बाद भूरी (ब्राह्मण भोजन) कराना व तीसरा गया में पहुंच कर अपने माता-पिता का श्राद्ध करना.
पुत्र के माता-पिता के प्रति तीन धर्म माने गये है. उक्त बातें पंडित बनवारी लाल शर्मा ने चांदचौरा धर्मशाला में अपने भक्तों के बीच कही. श्री शर्मा ने कहा कि पितरी प्रितिभापन्ने प्रियंते सर्व देवंता. मरने पर श्राद्ध के विधान में तीन षोडसी होती है. मलिन, मध्यम व उत्तम . 48 वेदियों पर श्राद्ध गयाजी में होता है. माता-पिता के जीवित रहने पर जो पुत्र उन्हें किसी तरह के कष्ट का सामना नहीं करने देता.
वह ही समाज में उच्च स्थान पाता है. मरने के बाद दोनों का श्राद्ध कर्म विधि-विधान से करता है, उनके माता-पिता बैकुंठवास करते हैं. उन्होंने कहा कि शास्त्र में विधान है कि मरने के बाद गयाजी का महात्म्य बहुत से पुराणों में वर्णित है. गया की जितनी भी प्रशंसा की जाये, उतनी कम है. जबसे पुत्र संकल्प लेता है गया श्राद्ध करने का तभी पितर जन नाचने लगते हैं व ज्यों-ज्यों पुत्र गया जी के नजदीक आता है, पितरों के स्वर्ग का सोपान पद नजदीक होता चला जाता है.

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