यहां भूखे मरने से अच्छा घर जाकर सुकून से मरें

गया: ब्रह्मयोनि पहाड़ से चट्टान लुढ़कने की घटना के बाद विस्थापित हुए लोग गया कॉलेज के शिविर में रहने की जगह अपने घर में रहना चाह रहे हैं. यहां रह रहे लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री आये थे, तो दो दिनों तक यहां की व्यवस्था अच्छी थी, पर अब स्थिति लचर हो गयी है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2016 2:51 AM
गया: ब्रह्मयोनि पहाड़ से चट्टान लुढ़कने की घटना के बाद विस्थापित हुए लोग गया कॉलेज के शिविर में रहने की जगह अपने घर में रहना चाह रहे हैं. यहां रह रहे लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री आये थे, तो दो दिनों तक यहां की व्यवस्था अच्छी थी, पर अब स्थिति लचर हो गयी है. 20 दिन गुजर गये. अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका. खाने में दोनों समय चावल दिया जाता है, जबकि शिविर में कई लोग मधुमेह के रोगी हैं. बार-बार कहने के बाद भी खाने व रहने की व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया गया.

कई दिनों से यहां दवा देनेवाले डॉक्टर भी गायब हैं. चावल में कंकड़, तो सब्जी में ज्यादा मिर्च रहती है. बच्चे व बुजुर्ग तो यहां खाने का एक निवाला लेने से भी कतराते हैं. लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने कहा था कि शिविर में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी, पर यहां अधिकारी सुनते ही नहीं हैं.

लोगों का कहना है कि दशहरा नजदीक है. इस मौके पर घर की साफ-सफाई व पूजा पाठ करनी होती है, पर आज तक प्रशासन की ओर से कोई समाधान नहीं निकाला गया. वार्ड पार्षद शशि किशोर शिशु ने कहा कि बीडीओ आवासन में भोजन पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. स्थिति बदतर है. कोई अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है. इधर युवा शक्ति के जिलाध्यक्ष ओम यादव ने कहा कि दुर्गापूजा से पहले विस्थापितों को हर हाल में अपने घर लाने की व्यवस्था की जाये. चट्टान के स्थायी निदान के लिए प्रशासन को काम में तेजी लानी चाहिए.
बदतर बना दी जिंदगी
प्रशासन घर तक जाने नहीं देता. शिविर में भोजन व रहने की व्यवस्था खराब है. मरना, तो दोनों जगह है. यहां भूखे मरेंगे, वहां खाकर. खाकर सुकून से मरना पसंद करेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा था कि एक सप्ताह के अंदर इसका समाधान निकाला जायेगा.
विद्या देवी
घर में कम-से-कम शुद्ध खाना तो मिलता था. यहां पर खाना एकदम घटिया है. बच्चों की पढ़ाई बंद हो गयी है. यहां लाते समय बेहतर सुविधा का वादा किया गया था. आज स्थिति यह है कि एक सप्ताह से चादर तक नहीं बदला गया है. बच्चों को बीच में खाने की जरूरत पड़ने पर बाजार से खरीदना पड़ता है. प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है.
रीता देवी

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