गया. भारत गौरव व राष्ट्र संत आचार्य मुनि श्री 108 विहर्ष सागर जी महा मुनिराज, धर्मवीर मुनि श्री विजयेश सागर जी, मुनि श्री विश्वहर्ष सागर जी महाराज ससंध का नगर में मंगल प्रवेश होने पर सकल दिगंबर जैन समाज की ओर से अगुवाई कर उनका स्वागत किया गया. आचार्य गुरुवर का मंगल विहार शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी के लिए चल रहा है. इस दौरान आचार्य गुरुवर रमना रोड स्थित दिगंम्बर जैन भवन में अल्पकाल के प्रवास पर विराजमान हैं. इनके दर्शन व आशीर्वचन के लिए जैन धर्माबलंबियों की भीड़ जुट रही है. इस मौके पर आचार्य श्री विहर्ष सागर जी महाराज ने कहा कि गयाजी की पावन धरा पर प्रवेश के दौरान सम्मेद शिखर की खुशबू आने लगी है. यह भूमि सिद्ध भूमि है, जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई. भगवान विष्णु के चरण कमल पड़े हैं. इस मोक्ष व ज्ञान की दिव्य भूमि पर आकर अपने को बड़ा ही सौभाग्यशाली मान रहा हूं. अपने प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति अपने आप में संतुष्ट नहीं है, जिसके कारण वह हमेशा तनावग्रस्त रहता है. जिसके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं है, वह हमेशा तनाव में ही रहेगा. महापुरुषों के विचारों व आदर्शों को जीवन में उतारने से ही तनाव से बच सकते हैं. तनाव का कोई इलाज नहीं होता है. संयम और धैर्य से ही तनाव से बचा जा सकता है. इसके लिए व्यक्ति को सात्विक जीवन जीना होगा. दिनचर्या में शाकाहारी को अपनाएं, नित दिन माता-पिता और गुरुओं की चरण वंदना करें. लोभ-लालच से दूर रहे. सद्गुणों को अपनाएं. मीडिया प्रभारी मुन्ना सरकार जैन द्वारा बताया गया कि आचार्य श्री का मंगल विहार इंदौर (मध्य प्रदेश) से जैन तीर्थ सम्मेद शिखर (झारखंड) की ओर चल रहा है, जहां वे इस वर्ष का चातुर्मास शाश्वत भूमि पर करेंगे. सात जुलाई को सम्मेद शिखर की पुण्य भूमि पर आचार्य गुरुवर का मंगल प्रवेश होगा. 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मंगल कलश स्थापित किया जायेगा. 23 जुलाई को आचार्य श्री भक्तों के साथ सम्मेद शिखर की वंदना करेंगे. सम्मेद शिखर जी में आर्यिका दीदीयों का दीक्षा कार्यक्रम भी आयोजित होगा. इसी के साथ ही चार महीने तक आत्मसाधना एवं धर्म प्रभावना कर चातुर्मास की प्रक्रिया शुरू करेंगे. जैन समाज के सह मंत्री अर्पित पाटनी ने बताया कि आचार्य श्री विहर्ष सागर जी महाराज 16 वर्ष तक धर्म प्रभावाना करके मेरठ की धरती पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की उपस्थिति में पांच लाख स्वयंसेवकों को संबोधित करने वाले एकमात्र संत हैं.
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