Gaya News : सैरातों के टेंडर नहीं होने से हर वर्ष नगर निगम को हो रहा लाखों रुपये का घाटा
Gaya News : नगर निगम की ओर से शहर में विभिन्न जगहों पर टेंडर कर ठेकेदारी वसूली जाती है. पांच वर्ष पहले तक सारी व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही थी.
गया. नगर निगम की ओर से शहर में विभिन्न जगहों पर टेंडर कर ठेकेदारी वसूली जाती है. पांच वर्ष पहले तक सारी व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही थी. केदारनाथ मार्केट को छोड़ अन्य जगहों के सैरातों के टेंडर में कई एजेंसी दिलचस्पी लेती थी. फिलहाल वसूली में कई तरह की दिक्कत व पैसा अधिक होने के चलते अब बड़े सैरातों के टेंडर में लोगों की दिलचस्पी लगभग समाप्त हो गयी है. मजबूरी में निगम को वसूली के लिए कनीय अभियंता, क्लर्क व अन्य तरह के कर्मचारियों को लगाया गया है. पिछले 10 वर्षों में अब तक सबसे बड़ा डेढ़ करोड़ सालाना वसूली वाले केदारनाथ मार्केट में 25 से अधिक निगमकर्मियों को लगाया गया है. इसके अलावा फिलहाल डेल्हा बस स्टैंड 25 लाख, चौंक टेंपो स्टैंड 55 लाख, कठोकर तालाब पार्किंग 33 लाख, शहीद रोड पार्किंग 10 लाख आदि पर वसूली निगमकर्मियों के जिम्मे है. इससे निगम को कोई फायदा नहीं हो रहा है. जहां तक विभागीय वसूली से निगम को लाखों रुपये का हर वर्ष घाटा ही हो रहा है. क्योंकि, विभागीय वसूली में फिक्स रकम नहीं किया जा सकता है. टारगेट जरूर दिया जाता है. विभागीय जिम्मेदारी में स्टांप शुल्क आठ प्रतिशत व जीएसटी 18 प्रतिशत भी नहीं मिलता है.
ऐसे बढ़ता गया रेट
निगम के नियम के अनुसार, तीन वर्षों पर टेंडर का रेट 15 प्रतिशत बढ़ाया जाता है. इसके अलावा एक जगह के टेंडर में कई लोग शामिल होते हैं. टेंडर लेने की आपाधापी में बोली लगायी जाती है. वर्चस्व की लड़ाई में टेंडर का दाम ही ठेकेदार बढ़ाते चले गये. अब सभी के लिए गले की फांस बनता जा रहा है. इस बार 2025-26 वित्तीय वर्ष में तीन वर्ष पूरा होने पर सभी टेंडर का रेट नियम के अनुसार 15 प्रतिशत बढ़ाया जायेगा. वसूली में भी कई जगहों पर पुलिस व अन्य स्तर से दिक्कत जाने लगी. इसके चलते कई लोगों ने हाल के दिनों में टेंडर लेने के बाद भी पूरा पैसा नहीं जमा किया. हालांकि, अब टेंडर के बोली लगाते वक्त किसी से झंझट नहीं हो सकता है. बोली भी यहां इप्रोक्स के माध्यम से ऑनलाइन ही लगायी जाती है.
सभी मिल कर निगम के आंतरिक स्रोत बढ़ाने का करेंगे प्रयास
निगम के आंतरिक स्रोत अधिक करने के लिए सैरात को सबसे अधिक सहयोगी माना जाता है. हाल के वर्षों से इन सैरातों पर कोई एजेंसी रुचि नहीं दिखा रही. इस कारण विभागीय वसूली करायी जा रही है. आनेवाले दिनों में निगम के आंतरिक स्रोत को बढ़ाने के लिए सैरातों का टेंडर को लेकर हर स्तर पर प्रयास किया जायेगा. शहर की बेहतरी के लिए यह बहुत ही जरूरी है. इन पैसों को शहर के विकास में लगाया जाता है.
डॉ वीरेंद्र कुमार उर्फ गणेश पासवान, मेयरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है