गया. पितरों की मोक्ष स्थली गयाजी धाम में 17 सितंबर से आयोजित 17 दिवसीय त्रिपाक्षिक श्राद्ध के 14वें दिन रविवार को देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों तीर्थयात्रियों ने अपने पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति व उनके मोक्ष की कामना को लेकर श्राद्ध विधान के तहत भीमगया वेदी, श्रीजनार्दन मंदिर, गो प्रचार वेदी व गदालोल वेदी पर पिंडदान व श्राद्धकर्म का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में संपन्न किया. इसके बाद भस्म कूट पर्वत स्थित मां मंगला गौरी मंदिर में इन सभी श्रद्धालुओं ने मां का पूजन व दर्शन किया. वहीं दूसरी तरफ एक दिन, तीन दिन, पांच दिन व सात दिन के लिए श्राद्धकर्म, पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड के निमित्त देश के विभिन्न राज्यों से आये डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने फल्गु तीर्थ, देवघाट, विष्णुपद, सीता कुंड, अक्षयवट, प्रेतशिला, ब्रह्मा सरोवर सहित कई अन्य वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड कर अपने पितरों के आत्मा की शांति, जन्म मरण से मुक्ति व उनके मोक्ष प्राप्ति की कामना की. श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के वरीय सदस्य मणिलाल बारिक ने वायु पुराण, नारद पुराण व अन्य पौराणिक हिंदू धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए बताया कि त्रिपाक्षिक श्राद्ध विधान के तहत हजारों तीर्थयात्रियों द्वारा आश्विन मास के कृष्ण पक्ष द्वादश तिथि यानी रविवार को भीम गया वेदी, गो प्रचार वेदी व गदालोल वेदी पर श्राद्धकर्म व पिंडदान किया गया. उन्होंने बताया कि श्राद्ध विधान के तहत श्रद्धालुओं ने भीम गया वेदी से पिंड दान व श्राद्धकर्म का कर्मकांड शुरू किया. इसके बाद गो प्रचार व गदालोल वेदी पर पिंडदान का कर्मकांड किया. गो प्रचार वेदी पर ब्रह्माजी द्वारा सवा लाख गोदान किये जाने से यह स्थान तीर्थ हो गया है. इस वेदी पर पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को ब्रह्म लोक प्राप्त होने की मान्यता है. उन्होंने बताया कि इन वेदी स्थलों पर कर्मकांड करने के बाद श्रद्धालु विधान के तहत भस्म कूट पर्वत स्थित मां मंगला गौरी का पूजन-दर्शन कर पितरों के मोक्ष प्राप्ति के साथ अपने व परिवार के लिए सुख समृद्धि की कामना की.
आज फल्गु में दूध तर्पण का है विधान, शाम में दीपदान के साथ पितृ दीपावली
श्री बारिक ने बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि यानी 30 सितंबर सोमवार को सुबह में फल्गु में दूध से तर्पण का विधान है. उन्होंने बताया कि सबसे पहले श्रद्धालु विष्णु भगवान को पंचामृत स्नान व पूजन करेंगे. इसके बाद फल्गु में दूध से तर्पण करेंगे. शाम में दीपदान के साथ पितृ दीपावली मनाया जायेगा. 01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि) को वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान, दो अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि) को अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन व तीन अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि) को गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य की दक्षिणा व पितृ विदाई का विधान है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है