Gaya News: पाकिस्तान में मरे परदादा की पोते ने पूरी की अंतिम इच्छा, गयाजी में किया पिंडदान

Gaya News: पाकिस्तान मूल के पितरों व मारे गये परिवार के अन्य सदस्यों की आत्मा की शांति व उनके मोक्ष की कामना को लेकर हरियाणा के जींद के परिजनों ने गयाजी में आकर अपने कुल पंडा दुर्गा गुप्त के निर्देशन में पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड किया. पत्नी लवली भारद्वाज व परिवार की सुषमा देवी, भारत कुमार, वरुण राज व राजकुमार सहित छह सदस्यों के साथ पिंडदान का कर्मकांड के लिए हरियाणा के जींद जिले से गयाजी पहुंचे तिलक राज ने बताया कि 1947 से पहले जब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था, तो इनके पूर्वज मुल्तान में रहते थे. भारत के बंटवारे के बाद इनके पिता रामफल पूरे परिवार सहित हरियाणा के जींद जिला में आकर रहने लगे. उन्होंने बताया कि भारत की आजादी से पहले इनके दादा साईं दत्ता, परदादा रामदयाल व अन्य पूर्वजों की मौत मुल्तान में हो गयी थी. इनके पूर्वज मुल्तान के तमन में रहते थे.

क्या बोले परिजन

गया धाम में पिंडदान का कर्मकांड करने से पितरों को जन्म-मरण से मुक्ति व मोक्ष प्राप्ति होती है, ऐसा सुना था. इच्छा जगी तब अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना को लेकर 18 सितंबर को चार दिन के लिए यहां आये हैं. विष्णुपद, प्रेतशिला, सीता कुंड, वैतरणी, गया कूप, अक्षयवट व कई अन्य वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड संपन्न कर चुके तिलक राज ने बताया कि पूर्वजों के साथ-साथ दादी व नानी के घर के मारे गये सभी परिजनों, सगे संबंधियों, ज्ञात अज्ञात व परिचितों की आत्मा की शांति व मोक्ष की कामना को लेकर यह कर्मकांड कर रहे हैं.

करेंट से मौत हुई अपने बेटे का भी किया पिंडदान

पिंडदानी तिलक राज पूर्वजों के साथ-साथ अपने बेटे पारस भारद्वाज की आत्मा की शांति व मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म तर्पण का कर्मकांड किया है. उन्होंने बताया कि पारस भारद्वाज की मौत 2023 में बिजली का करेंट के लगने से हो गयी थी. पिंडदान का कर्मकांड के निमित्त पहली बार गयाजी आये तिलक राज ने बताया कि वर्ष 1995 में उनके चाचा कस्तूरी लाल यहां आकर पितरों को पिंडदान कर चुके हैं.

मुक्ति के लिए गयाजी में पिंडदान हो, पूर्वजों की थी इच्छा

लवली भारद्वाज ने बताया कि कहीं न कहीं उनके पूर्वज जो पाकिस्तान में रहते थे, उनकी इच्छा थी कि मरने के बाद मुक्ति के लिए गयाजी में उनका भी पिंडदान हो. मारे गए पूर्वजों की इस इच्छा को पूरा करने के लिए यहां आकर पिंडदान का कर्मकांड कर रही हूं.

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