गया. 17 दिवसीय त्रिपाक्षिक श्राद्ध के आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि बुधवार को पितरों को जल तर्पण के लिए सूर्योदय के साथ फल्गु तट पर श्रद्धालुओं का जन सैलाब जो पहुंचने लगा वह दोपहर बाद तक जारी रहा. अपने पितरों के आत्मा की शांति व उनके मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर देश के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालुओं सहित शहर व जिले के ग्रामीण क्षेत्र के डेढ़ लाख से अधिक लोगों ने पूरे विधि विधान व आस्था के साथ अपने पितरों को जल तर्पण किया. फल्गु नदी के पूर्वी तट स्थित सीता कुंड, दिनकर घाट, भास्कर घाट, पश्चिमी तट स्थित देवघाट, गदाधर घाट, संगत घाट, गायत्री घाट पिता महेश्वर घाट, सीढिया घाट सहित अन्य सभी घाटों पर पर सूर्योदय के साथ श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जो शुरू हुआ वह दोपहर बाद तक जारी रहा. श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य मणिलाल बारिक ने बताया कि 17 दिवसीय पितृपक्ष मेला के अंतिम दिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को पितरों को जल तर्पण की परंपरा है.
अक्षय फल की प्राप्ति के लिए अक्षयवट वेदी पर पिंडदान
पितृपक्ष मेला के अंतिम दिन देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों तीर्थयात्रियों ने अपने पितरों को जन्म-मरण से मुक्ति व अक्षय फल प्राप्ति की कामना को लेकर अक्षयवट वेदी पर पिंडदान, श्राद्धकर्म अपने कुल पंडा के निर्देशन में पूरा किया. इसके बाद रुक्मिणी सरोवर में जल तर्पण कर पितरों के उद्धार की कामना की. आखिरी दिन पिंडदान का कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं को उनके कुल पंडा द्वारा पीठ ठोक कर सुफल आशीर्वाद दिया गया. मेले के आखिरी तिथि होने व श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहने से विष्णुपद मंदिर क्षेत्र सहित नजदीकी आवासन स्थलों में भी काफी श्रद्धालुओं ने पितरों को मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड संपन्न किया. श्री बारिक ने बताया कि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि यानी तीन अक्तूबर को नाना नानी कुल के उद्धार के लिए फल्गु नदी के पूर्वी तट स्थित गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड दान, आचार्य की दक्षिणा व पितृ विदाई का विधान है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है