बिहार के इस गांव में एक कमरे में रहते हैं सैकड़ों रंगीन पक्षी, 80 सालों से एक परिवार कर रहा सेवा
गया जिले के सुपाई गांव में अंजर का घर कबूतरों और पक्षियों का भी घर है. उन्होंने पक्षी प्रेम के कारण एक घर में अलग कमरा बनवाया है और उन्हें दाना-पानी देते हैं. उनके बड़े भाई द्वारा 80 साल पहले शुरू की गई परंपरा आज भी अंजर ने कायम रखी है. इस बारे में अंजार क्या कहते हैं? इस पर पढ़ें आमस, गया से एस अली की खास रिपोर्ट
Gaya News: बिहार के गया जिले के आमस प्रखंड की अकौना पंचायत अंतर्गत सुपाई गांव में एक परिवार ऐसा है, जो बिना किसी लाभ के कबूतरों से काफी प्रेम करता है. परिवार के सदस्य कबूतरों से इतनी मुहब्बत करते हैं कि इनके लिए एक कमरे का निर्माण करवा दिया है. इसमें विभिन्न रंगों के सैकड़ों कबूतर रहते हैं.
80 साल पहले बड़े भाई ने शुरू की परंपरा
सुपाई गांव के अंजर खान कहते हैं कि लगभग 80 साल पहले उनसे बड़े भाई दुलारे खान जब करीब 15 वर्ष के थे, तभी उन्हें कबूतर पालने का शौक हुआ था. छात्र जीवन से ही मकान के ऊपर मिट्टी के कोठे पर कबूतरों को पालना शुरू कर दिया. घर के आंगन में जब दाना देते थे तो सैकड़ों कबूतरों से आंगन भर जाता था और कबूतर प्यार से सिर और हाथ पर बैठ जाते थे.
बड़े भाई की मौत के बाद अंजर करते हैं देखभाल
अंजर बताते हैं कि कबूतरों की संख्या लगभग एक हजार तक पहुंच जाने के बाद मकान के समीप 40 वर्ष पहले कबूतरों के लिए भाई ने एक विशेष कमरा निर्माण करवाया. इसमें आज भी सैकड़ों कबूतर रहते हैं. कमरे में कई घड़े लटकाये गये हैं. भाई की मृत्यु के बाद गत 15 वर्षों से अंजर खान और भतीजा हसीब अनवर उर्फ जानी बाबू आदि कबूतरों की देखरेख करते हैं. वह बताते हैं कि जुलाई से नवंबर महीने तक कबूतरों को लगातार दाना देना पड़ता है. पानी पीने के लिए कमरे के समीप ही एक नांद बनाया गया है. इसमें कबूतरों के अलावा अन्य पक्षी पानी पीते हैं.
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दिल को मिलता है सुकून : अंजर खान
अंजर खान कहते हैं कि सौम्य और सुंदर पक्षी कबूतर शांति, प्रेम और आशा के प्रतीक माने जाते हैं. कबूतर का इस्तेमाल कई शांति अभियानों, अहिंसा और सुलह के प्रतीक के रूप में किया गया है. यह सबसे वफादार और समर्पित पक्षियों में से एक हैं. कबूतरों को दाना पानी देने से दिली सुकून मिलता है.