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पितृपक्ष में कोरोना से गया को आर्थिक मार, छीनी रौनक

गया : प्राचीन काल से पितरों की मुक्ति धाम के रूप में गयाजी को पूरी दुनिया में जाना जाता है. विशेषकर प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां आयोजित होने वाले 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में देश-विदेश के लाखों लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त यहां आते रहे हैं.

गया : प्राचीन काल से पितरों की मुक्ति धाम के रूप में गयाजी को पूरी दुनिया में जाना जाता है. विशेषकर प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां आयोजित होने वाले 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में देश-विदेश के लाखों लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त यहां आते रहे हैं.

बीते वर्ष भी आयोजित हुए इस मेले में देश-विदेश से करीब सात लाख लोग यहां आकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने कुल पुरोहितों के निर्देशन में संपन्न किये थे. बीते वर्ष आयोजित पितृपक्ष मेले के पहले दिन से ही विष्णुपद, देवघाट, गदाधर घाट, फल्गु नदी में तीर्थयात्रियों की उमड़ी महती भीड़ के कारण तीर्थयात्रियों को ना केवल पैर रखने में मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा था बल्कि कर्मकांड को पूरा करने के लिए जगह के इंतजार में भी घंटों समय बिताना पड़ता था.

इसके अलावा विष्णुपद मंदिर क्षेत्र का पूरा परिसर यात्रियों से भरा पड़ा था. लेकिन इस वर्ष कोविड-19 के कारण सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर पितृपक्ष मेले के आयोजन पर रोक लगने से इन क्षेत्रों में न केवल सन्नाटा पसरा हुआ है. बल्कि तीर्थयात्रियों के श्राद्धकर्म व पिंडदान का कर्मकांड कराने वाले पंडा समाज के लोगों की भी चहल कदमी इस वर्ष मेले के आयोजन पर लगे रोक के कारण इन क्षेत्रों में लगभग पूरी तरह से थम सी गयी है.

इसके अलावा इन क्षेत्रों में एक सौ से अधिक पूजन सामग्रियों, पिंडदान से जुड़े सामानों वह अन्य सामानों के फुटपाथी दुकानें भी लगी थीं. लेकिन इस वर्ष इन क्षेत्रों की स्थायी दुकानों में भी उदासी छायी हुई रही.

posted by ashish jha

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