भारत की भूमि ने कभी युद्ध का विचार नहीं दिया : राज्यपाल

धर्म संस्कृति संगम के तत्वावधान में गुरुवार को 10वां वार्षिक चीवरदान व संघदान कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए.

By Prabhat Khabar Print | June 6, 2024 7:42 PM

बोधगया. धर्म संस्कृति संगम के तत्वावधान में गुरुवार को 10वां वार्षिक चीवरदान व संघदान कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. चीवरदान कार्यक्रम के पूर्व धर्म संस्कृति संगम के संस्थापक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ इंद्रेश कुमार ने विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर में पूजा-अर्चना की और बोधिवृक्ष के पास कुछ पल बिताया. महाबोधि सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि भारत ही ऐसी भूमि है जहां अपने से भिन्न विचार वालों के साथ शास्त्र लेकर विमर्श करते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में शस्त्र लेकर अपनी बात मनवाने का प्रयास करते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले जब मैं भगवान बुद्ध का अस्थि कलश लेकर थाईलैंड गया था तो वहां के जनमानस में उत्पन्न भाव से मैं अभिभूत हो गया. उस दौरान थाईलैंड के उप प्रधानमंत्री ने कहा था कि सनातन और बौद्ध विचार एक ही हैं. सनातन विचार से ही बुद्ध मत आया है. वहां सूर्य मंदिर में भगवान विष्णु और बुद्ध की पूजा साथ-साथ होती है. उन्होंने कहा कि हमें दोनों विचारों को एक साथ लेकर चलने की आवश्यकता है. भारत की भूमि ने किसी विचार को बलपूर्वक किसी पर नहीं थोपा, जबकि बाहर से आये विचार शास्त्र नहीं शस्त्र देते हैं. भारत की भूमि ने कभी युद्ध का विचार नहीं दिया. हमारे देश की परंपरा रही है कि शाश्वत मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया. हमारे शाश्वत मूल्यों की धारा लाखों वर्षों से प्रवाहित हो रही हैं. राज्यपाल ने कहा कि भारत माता के ही हम सभी संतान हैं, इस कारण हम सभी भाई-बहन हैं. उन्होंने कहा कि हम सभी मानव धर्म के लिए ही हैं. सत्य एक ही है, पर रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं. अलग-अलग विचारधारा है, पर प्राण तत्व एक ही है, लेकिन व्यवहार व कार्यशैली में अंतर आता है. धर्म संस्कृति संगम इस भ्रम को दूर करने का प्रयास कर रहा है. धर्म संस्कृति संगम के संस्थापक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति की यह बहुत बड़ी विशेषता है कि इसमें क्रोध और घृणा को भी हिंसा माना गया है. सनातन धर्म में न्यूनतम हिंसा का भी स्थान नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत की भूमि पर कई धर्म की उत्पत्ति तो हुई लेकिन उन विचारों के साथ संवाद हुआ, कभी संघर्ष नहीं हुआ. यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी विशेषता है. भारत कभी भी किसी के सत्ता पर अधिकार करने का भाव न रखता है न कभी रखेगा. भारत का भाव है कि सभी श्रेष्ठ बने, एक बने और नेक बने. तथागत बुद्ध ने भी कहा था अप दीपो भव. उन्होंने कहा कि कोई भी अच्छी बात खुद से शुरू करें. हम विश्वास रखते हैं कि सनातन और बौद्ध पंथ के लोग हाथ से हाथ, कंधे से कंधा और दिल से दिल मिलाकर आगे बढ़ेंगे. भारत को भी श्रेष्ठ बनायेंगे और विश्व को भी शांति, करुणा और मैत्री का रास्ता दिखायेंगे. मंचासीन आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक मोहन सिंह, बोधगया स्थित शंकराचार्य मठ के स्वामी विवेकानंद, महामंडलेश्वर ईश्वर दास, लाओस मंदिर के भिक्षु साईसाना बोधवांग, महाबोधि मंदिर के केयर टेकर भिक्षु डॉ दीनानंद, डॉ राधा कृष्ण मिश्र , संजय कुमार सिंह, कृष्णदेव प्रसाद, संजय यादव आदि ने अंग वस्त्र, भगवान विष्णु का चरण चिह्न व बुद्ध मूर्ति भेंट कर अतिथियों का स्वागत व सम्मानित किया. इस मौके पर डॉ माधवी तिवारी, मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशि प्रताप शाही, आइआइएम बोधगया की निदेशक डॉ विनीता सहाय, प्रो सुशील कुमार सिंह, डॉ एकता वर्मा, पूर्व सांसद रामजी मांझी सहित देशभर से आए श्रद्धालु व विभिन्न बौद्ध मठों के बौद्ध भिक्षु मौजूद थे. करीब सौ भिक्षुओं को चीवरदान के साथ सभी भिक्षुओं व आगंतुकों को संघदान कराया गया. मंच का संचालन अनूप केडिया ने किया.

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