गया लोकसभा से तीन बार सांसद रहे ईश्वर चौधरी, न गाड़ी खरीदी, न रखा गार्ड, चुनाव प्रचार के दौरान हुई थी हत्या
ईश्वर चौधरी, एक ऐसे राजनेता थे जो जन-जन के दिल में रहते थे. वो गया से तीन बार चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. उनके नाम पर गया में एक रेलवे हाल्ट भी है. उनकी सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कभी गाड़ी तक नहीं खरीदी.
कंचन,गया. गया लोकसभा क्षेत्र का तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व सांसद स्व ईश्वर चाैधरी की सादगी और किसी को भी अपना बना लेने के उनके गुण की चर्चा आज भी होती है. गया सुरक्षित संसदीय क्षेत्र का उन्होंने 1971 और 1977 में प्रतिनिधित्व किया. 1989 में फिर वे गया के सांसद हुए. 1991 में 15 मई को मध्यावधि चुनाव प्रचार के दौरान हुई उनकी हत्या ने देश के अंदर हलचल पैदा कर दी थी.
यह एक ऐसे व्यक्तित्व की राजनीतिक हत्या थी, जो जन-जन का नेता था. विपक्षी भी उन्हें गले लगाते थे. जिसने वोट किया उससे भी खुश, जिसने उन्हें दिया, उससे भी खुश रहते थे. वह हर किसी के घर में सहज चले जाते और उम्र के हिसाब से रिश्ते बनाकर किसी के पांव छू लेते तो किसी को हाथ जोड़ प्रणाम कर लेते. ईश्वर चौधरी का जन्म पांच मार्च 1939 को को हुआ था. उनके नाम पर मानपुर के पास ईश्वर चौधरी रेलवे हॉल्ट है.
कभी साबुन नहीं लगाया, काली या मुल्तानी मिट्टी लगा करते थे स्नान
तीन-तान बार सांसद रहते हुए भी ईश्वर चौधरी ने न तो अपनी काेई गाड़ी रखी और ना ही कभी सुरक्षा गार्ड रखा. जो कोई उनके घर जाता, उसे फुला हुआ चना और एक लड्डू खिला कर पानी जरूर पिलाते थे. उन्होंने कभी साबुन का इस्तेमाल नहीं किया. स्नान करते वक्त हमेशा शरीर व माथे में काली मिट्टी या मुल्तानी मिट्टी लगाते. जब किसी काम से बाहर निकलते थे, तो अपने बैग में साबुन की जगह हमेशा मिट्टी साथ लेकर चलते थे.
लोकल में कहीं जाना होता तो या तो पैदल चलते या फिर रिक्शे से. उनकी सोच यह थी कि आखिर रिक्शा वाला दो पैसा कमायेगा, तभी तो अपने घर-परिवार का लालन-पालन करेगा. ईश्वर चौधरी जब पहली बार जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़े, तब देश में दो ही जनसंघ के उम्मीदवार जीते, जिनमें एक अटल बिहारी वाजपेयी व दूसरा ईश्वर चौधरी.
अटल और आडवाणी से मिलने के लिए नहीं लेनी पड़ी कभी इजाजत
भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय शर्मा बताते हैं कि ईश्वर चौधरी को अटल बिहारी वाजपेयी व लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने के लिए कोई इजाजत नहीं लेनी पड़ती थी. दिन हो रात कभी भी उनके आवास में उनका सीधी प्रवेश था. 1991 का चुनाव लड़ने से उन्होंने मना कर दिया था. क्योंकि वे उस वक्त की राजनीतिक व्यवस्था में अपने को फिट नहीं पा रहे थे. लेकिन, पार्टी के दबाव में मैदान में उतरे. लाल कृष्ण आडवाणी जी ने उन्हें जबरदस्ती टिकट देकर चुनाव मैदान में उतरने को कहा था. यह बात उनकी हत्या के बाद गांधी मैदान में जनसभा को संबोधित करते हुए खुद आडवाणी जी ने कही थी. तब मगध का क्षेत्र नक्सल आंदोलन का गढ़ बन चुका था.
अगर सुरक्षा गार्ड लिये होते तो बच जाती जान
जब भी पार्टी के लाेग उन्हें सलाह देते या प्रशासन के उच्च पदाें पर बैठे लाेग उनसे सुरक्षा गार्ड लेने की बात कहते, ताे ईश्वर चौधरी टाल जाते थे. अगर उन्होंने सुरक्षा गार्ड लिये होते तो 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान उन पर किया गया हमला विफल हो सकता था, उनकी जान बच जाती.
काेंच के कठाैतिया के पास कर दी गयी थी हत्या
1991 में देश में मध्यावधि चुनाव हो रहा था. यह वो दौर था जब मध्य बिहार नक्सल आंदोलन का गढ़ बन चुका था. हत्याएं आम बात हो गयी थीं. चाैधरी जी 15 मई, 1991 काे चुनाव प्रचार के दाैरान अपनी जीप से काेंच के कठाैतिया गांव के समीप से गुजर रहे थे. जैसे ही शाैच के लिए वाहन से उतरे, सुपारी लेने वाले अपराधी उनके सामने आ गये. उनके साथ रहे लोगों को मारना-पीटना शुरु किया, तो ईश्वर चौधरी ने कहा उन्हें क्यों मार रहे हो. मारना ही है तो मुझे मार दो. लोग बताते हैं मारने वाले के हाथ कांप रहे थे. पहले उन्हें प्रणाम किया फिर गाेलियाें की तड़तड़ाहट के बीच उनकी लाश बिछ गयी.
अंतिम यात्रा में आठ लाख से ज्यादा लोग हुए थे शामिल
उस समय के डीएम ने बताया था कि ईश्वर चौधरी की अंतिम यात्रा में आठ लाख से ज्यादा लोग शरीक हुए थे. तब के ‘डाेमराजा’ ने कहा था कि अपने जीवन में कितनों का अंतिम संस्कार कराया, यहां तक कि टिकारी महाराज का भी, पर ऐसी भीड़ पहली बार देखी.
Also Read : सांसद बनने के बाद ट्रेन में फर्श पर बैठकर दिल्ली गए थे किराय मुसहर, जानिए बिहार के पहले दलित MP की कहानी