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Lok Sabha Elections: बिहार के गया में इन बूथों पर 25 साल बाद होगी वोटिंग, जानें क्या रही वजह

Lok Sabha Elections: गया लोकसभा क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों में तीन गांव ऐसे हैं जहां 25 साल बाद बूथ बनाया गया है. इस बार इन तीन गांवों के लोग अपने घर के पास मतदान करेंगे.

Lok Sabha Elections: पटना. बिहार के गया जिल में कई बूथों पर 25 साल बाद इस बार वोटिंग होगी. गया के फतेहपुर प्रखंड के नक्सलग्रस्त बसकटबा, पतवास और चोढ़ी गांव के लोग 25 साल बाद लोकसभा चुनाव में इस बार अपने गांव के बूथ पर अपना वोट डालेंगे. पहले इन गांव के लोग दूसरे जगह पर जाकर वोट देते थे. नक्सलियों द्वारा वोट बहिष्कार व बुरा परिणाम भुगतने का फरमान जारी किए जाने के बाद भी इन गांवों के लोग 4 से 6 किलोमीटर पैदल चलकर वोट देने जाते थे. इस बार वे अपने गांव में स्थित विद्यालय के बूथ पर वोट देंगे. इन मतदान केंद्रों पर सुरक्षा की चाक-चौबन्ध व्यवस्था की गयी है. प्रशासन का दावा है कि कड़ी सुरक्षा के बीच यहां के लोग इस बार निर्भीक होकर मतदान करेंगे. इस बार इन मतदाता अपने गांव में वोट करने को लेकर काफी उत्साहित हैं.

झारखंड की सीमा पर बसे हैं ये गांव

बिहार-झारखंड सीमा पर जंगलों-पहाड़ों के बीच बसे बसकटबा, पतवास और चोढ़ी गांव घोर नक्सल ग्रस्त रहा है. नक्सल क्षेत्र होने के कारण कोई अनहोनी के मद्देनजर वर्ष 2001 में इन गांवों से बूथ को हटाकर दूसरे गांव के बूथ पर शिफ्ट कर दिया गया था. बसकटबा और पतवास गांव के बूथ को अलखडीहा व गुरगुपा में और चोढ़ी गांव के बूथ को दुन्दु में शिफ्ट कर दिया. इसके बाद से बसकटबा, पतवास और चोढ़ी गांव के मतदाता अब तक अलखडीहा, गुरगुपा व दुन्दु गांव आकर वोट देने को मजबूर थे.

वोटरों में खासा उत्साह

इससे पहले इन गांवों के लोग गुरगुपा मध्य विद्यालय बूथ पर वोट देने आते थे. इन तीनों गांवों के मतदाताओं को चार से 6 किलोमीटर दूरी तय कर वोट देने जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. इतना ही नहीं काफी संख्या में मतदाता वोट करने से वंचित रह जाते थे. इस बार अपने ही गांव में मतदान करने को लेकर इन गांवों के मतदाता काफी उत्साहित हैं. खास कर बड़े बुजुर्ग वोटरों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. वैसे बड़े बुजुर्ग वोटर इस बात को लेकर दुखी हैं कि उन्होंने हमेशा जान जोखिम में डालकर वोट दिया है, लेकिन आज तक किसी दल के नेता ने उनका या उनके गांव की कोई सुध नहीं ली है.

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जारी हुआ करता था नक्सली फरमान

बसकटवा और पतवास गांवों के वोटर कहते हैं कि 25 साल पहले उनके गांव इलाके में नक्सलियों का प्रभाव बढ़ा था. उस समय नक्सलियों द्वारा किसी भी चुनाव में वोट बहिष्कार की घोषणा की जाती थी. साथ ही फरमान जारी होता था कि जो भी वोट देंगे. उन्हें बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा. फिर भी इन गांवों के लोग 4 से 6 किलोमीटर पैदल चलकर वोट देने जाते थे. ग्रामीणों को इस बात का भी काफी मलाल है कि वेबराबर वोट करते हैं, फिर भी उनके गांव का विकास नहीं हुआ है. कोई भी नेता उनके गांव के विकास के प्रति कभी भी ध्यान नहीं दिया है. उनके गांव में आज भी पीने के पानी की घोर समस्या है. नल-जल से भीउन्हें पानी नहीं मिला है.

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