गया. एनीमिया को लेकर दिये जा रहे प्रशिक्षण के दूसरे दिन बताया गया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-पांच की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 49 वर्ष आयुवर्ग की 64.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित होती हैं. वहीं एनएफएचएस- चार की रिपोर्ट के मुताबिक इसी आयुवर्ग की 68.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित थीं. इसमें 3.7 प्रतिशत की कमी आयी है. एनएफएचएस- पांच की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 63.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. महिलाओं के किसी भी समूह में एनीमिया का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक है. गर्भवती महिलाओं में एनीमिया से बचाव व प्रबंधन कर मातृत्व एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है. एनीमिया से बचाव के लिए गर्भावस्था के चौथे माह की शुरुआत से प्रत्येक दिन आयरन एवं फॉलिक एसिड की एक गोली, कुल 180 गोली का सेवन कराया जाना महत्वपूर्ण है. लेकिन, कई गर्भवती ऐसी होती हैं जिनका हीमोग्लोबिन स्तर काफी कम होता है और वे गंभीर या अतिगंभीर एनीमिया से ग्रसित होने की श्रेणी में आती हैं. इसके लिए आयरन सुक्रोज के इंजेक्शन की व्यवस्था होती है. यह जानकारी जिला स्वास्थ्य समिति, यूनिसेफ तथा एम्स पटना के सहयोग से चिकित्सा पदाधिकारियों तथा एएनएम के लिए आयोजित मैटरनल एनीमिया मैनेजमेंट प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षकों ने दी. इस दौरान बताया गया कि सभी गर्भवती महिलाओं का प्रत्येक प्रसव पूर्व जांच और प्रसव पश्चात जांच के दौरान हीमोग्लोबिन की जांच की रिपोर्ट के आधार पर एनीमिया मैनेजमेंट करना आवश्यक है. इंट्रावीनस आयरन सुक्रोज की खुराकें पूर्ण होने के एक माह के उपरांत हीमोग्लोबिन स्तर में कोई सुधार नहीं होने पर एनीमिया की अन्य कारणों की जांच एवं उपचार के लिए जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज रेफर करना है.
आयरन सुक्रोज को लेकर दिया गया यह प्रशिक्षण
प्रशिक्षण के दौरान इंट्रावीनस आयरन सुक्रोज देने की विधि के बारे में भी प्रशिक्षण दिया गया. एक बार में कुल 200 मिलीग्राम आयरन सुक्रोज की खुराक दिया जा सकता है. यह खुराक नॉर्मल सेलाइन में बीस से तीस मिनट में दिया जाना है. अधिकतम खुराक एक सप्ताह में छह सौ मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. एक गर्भवती के लिए कुल आयरन सुक्रोज की खुराक एक हजार मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. चिकित्सा अधिकारी की निगरानी में ही गर्भवती महिला को इंट्रावेनस आयरन सुक्रोज की डोज देनी है. इस दौरान गर्भवती का बीपी, ह्रदय गति, सांस दर, तापमान और भ्रूण के दिल की धड़कन की दर जैसे महत्वपूूर्ण संकेतों की निगरानी की जानी चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है