26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गया में 100 साल पुराना है ताड़ के पंखे का कारोबार, जानिए कैसे होता है तैयार?

मानपुर के कई इलाकों में ताड़ के पंखे बनाने का लघु उद्योग चल रहा है. यहां हर महीने पांच लाख से ज्यादा ताड़ के पंखों का कारोबार होता है. बरसाती पूजा पर इसकी मांग बढ़ जाती है, बिहार के अलावा झारखंड और बंगाल समेत कई राज्यों में इसकी आपूर्ति की जा रही है.

गया जिला के मानपुर के शिवचरण लेन, पेहानी व अबगिला सहित कई क्षेत्रों में ताड़ पंखाें का उद्योग बीते करीब 100 वर्षों से संचालित है. शिवचरण लेन मुहल्ले में पान जाति के 10 से अधिक घरों में रह रहे 100 से अधिक लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं. घर के मुखिया के साथ-साथ महिलाएं व बच्चे भी ताड़ पंखा बनाने की कला में माहिर हैं. घरों के कामकाज को पूरा करने के बाद महिलाएं, तो पढ़ाई करते हुए बच्चे इस काम में हाथ बंटा कर इस उद्योग को विकसित करने में समर्पित भाव से लगे हैं.

बीते कई साल से यहां प्रतिवर्ष पांच लाख पीस से अधिक ताड़ पंखाें का कारोबार हो रहा है. पूरे बिहार के साथ झारखंड व पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में यहां के ताड़ पंखों की सप्लाइ होती है. औसतन एक कारीगर प्रतिदिन सौ से 150 पीस तक ताड़ पंखा बनाता है.

सात चरणों में बनकर तैयार होता है ताड़ पंखा

ताड़ पंखा उद्योग से जुड़े कारीगरों की माने, तो यह सात चरणों में बनकर तैयार होता है. सबसे पहले जिले के फतेहपुर, बाराचट्टी व अन्य ग्रामीण क्षेत्रों से ताड़ पत्ता लाया जाता है. फिर इस पत्ते को मुलायम करने के लिए आठ घंटे तक पानी में फुलाया जाता है. इसके बाद इसकी पंखे के आकार के अनुसार कटिंग की जाती है. कटिंग के बाद पंखा बनाने का काम होता है. तैयार पंखे को फिर लंबे समय तक टिकाऊ रखने के लिए सिलाई की जाती है. इस प्रक्रिया के बाद गंदगी हटाने के लिए धुलाई की जाती है. इस चरण के बाद आकर्षक व सुंदर दिखने के लिए तैयार पंखे पर रंगाई होती है.

इन सामानों से बनाया जाता है ताड़ पंखा

इस उद्योग से जुड़े कारीगरों के अनुसार ताड़ पंखा बनाने में ताड़ पत्ताें के अलावा सूत धागा, सावा रस्सी, रंग, सरेस सहित कई अन्य सामान का उपयोग किया जाता है. वर्तमान में यहां तीन क्वालिटी व आकार के पंखे बनाये जा रहे हैं. कांटी पंखा, दोहरा रंगीन पंखा व छोटा पंखा यहां बनाया जाता है. इस पंखे की कीमत थोक बाजार में चार से सात रुपये प्रति पीस है, जबकि खुदरा बाजार में इसकी कीमत 10 से 15 रुपये प्रति पीस है.

साल में केवल तीन महीने ही चलता है यह उद्योग

प्रतिदिन मांग घटने से ताड़ पंखाें का उद्योग पूरे साल में केवल तीन महीने ही चलता है. इससे जुड़े कारीगर द्वारा बताया गया कि बरसाती पूजा यानी बट सावित्री पूजा में सुहागिन महिलाएं पंखे की भी पूजा करती हैं. इसके कारण इस व्रत पर ताड़ पंखे की काफी मांग होती है. लोगों की इस जरूरत को करीब तीन महीने में ही पूरा कर लिया जाता है. बाकी दिनों यह कारोबार नहीं के बराबर चलता है. कारोबार ठप होने से इस उद्योग से जुड़े लोग पावर लूम में कपड़े की बुनाई कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

हैजा से बचने के लिए 100 साल पहले असम से आया था यह समुदाय

करीब 100 वर्ष पहले देश-दुनिया में हैजा से बचने के लिए यह समुदाय असम से यहां आया था. शुरुआती दौर में यह समुदाय शहर के रमना रोड स्थित कन्या पाठशाला की गली में शरण लिया था. रोजगार नहीं मिलने पर खुद से ताड़ पंखा बनाने की शुरुआत की थी. समय बीतने के साथ-साथ उद्योग का फैलाव होता गया और धीरे-धीरे शहर से निकलकर सभी लोग मानपुर के शिवचरण लेन में रहने लगे.

काफी जगह होने से इस उद्योग का भी यहां तेजी से फैलाव हुआ. इनमें से कई मानपुर के पेहानी तो कई अबगिला व अन्य क्षेत्रों में भी इस कारोबार को शुरू किया. वर्तमान में इन जगहों पर करीब 200 लोग इस उद्योग से जुड़कर अपने-अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं.

तस्वीरों में देखिए कैसे बनाया जाता है ताड़ का पंखा

394517Gya Mb 29 17052024 18 C181Pat1023124529 1
गया में 100 साल पुराना है ताड़ के पंखे का कारोबार, जानिए कैसे होता है तैयार? 5
394517Gya Mb 28 17052024 18 C181Pat1023124529
गया में 100 साल पुराना है ताड़ के पंखे का कारोबार, जानिए कैसे होता है तैयार? 6
394517Gya Mb 31 17052024 18 C181Pat1023124529
गया में 100 साल पुराना है ताड़ के पंखे का कारोबार, जानिए कैसे होता है तैयार? 7
394617Gya Mb 32 17052024 18 C181Pat1023124529
गया में 100 साल पुराना है ताड़ के पंखे का कारोबार, जानिए कैसे होता है तैयार? 8

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें