गयाजी के पंचवेदी पर श्राद्ध से पितर को मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति, जानें यहां सत्तू क्यों है जरूरी
Pitru Paksha 2022: फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी है. प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध उन लोगों को किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो. महत्वपूर्ण जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर...
गया जी में पितृपक्ष के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व है. पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी में कर्मकांड किया जाता है. आज सुबह से ही पिंडदानी ब्रह्मकुंड और प्रेतशिला में पिंडदान कर रहे हैं. इस पर्वत पर धर्मशीला है. जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करते है. पिंडदानी धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर पितर को याद करते है. मान्यता है कि ‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
इन जगहों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व
बिहार की धार्मिक नगरी गया जी में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज पिंडदान कर रहे हैं. इसके साथ ही प्रेतशिला में पिंडदान करने का महत्व है. पितृपक्ष के दूसरे दिन पंचवेदी यानी प्रेतशिला, रामशिला, ब्रह्मकुंड, कागबली और रामकुंड में पिंडदान किया जाता है. पिंडदानी इन पांचों वेदियों पर पिंडदान करते हैं. इन पांचों वेदियों में प्रेतशिला सबसे प्रमुख पिंड वेदी माना गया है.
पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान जारी है. प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध उन लोगों को किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों को धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है. वहीं पूर्वज को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. वहीं, प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ पर आज भी भूत-प्रेतों का वास है. जहां हजारों की संख्या में पिंडदानी 676 सीढ़ियां चढ़कर पिंडदान करने पहुंचे हुए हैं. इस पर्वत पर पिंडदानी सत्तू उड़ाकर पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
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‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने कहा कि इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पद चिन्ह पर पिंडदान करना होगा. जिसके बाद पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है. तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे. उसी समय से इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया और ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा. इस पर्वत पर धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाते हैं. ‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला पर भगवान विष्णु की प्रतिमा है.