गया. विश्व प्रसिद्ध 17 दिवसीय (त्रिपाक्षिक) पितृपक्ष मेला महासंगम का उद्घाटन मंगलवार को होगा. इस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विशेष निर्देश पर पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की ओर से गयाजी आये पिंडदानियों को पैकेजिंग कराकर उपहार स्वरूप गंगाजल भेंट किया जायेगा. 10 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों को गंगाजल देने की योजना है. 102 स्वास्थ्य शिविर लगाये जा रहे हैं. प्रमुख अस्पतालों में 70 बेड व 15 आइसीयू बेड रिजर्व रखे गये हैं. 12 डेडिकेडेट एंबुलेंस रहेंगे. पांच मोबाइल मेडिकल टीमें 24 घंटे सेवा में तत्पर रहेंगी. विशेष खाद्य जांच के लिए पांच टीमें बनायी गयी हैं. 4019 खंभों सहित लाइटों से पूरा मेला क्षेत्र जगमग करता रहेगा. 17 हाइमास्ट लाइटें व 34 मिनी हाइमास्ट लाइटें भी लगायी गयी हैं. मेला क्षेत्र में 210 खंभों पर सुरक्षात्मक उपकरण लगाये गये हैं. 350 किमी तक एलटी तार को एलटी एबी केबलिंग किया गया है. विधि-व्यवस्था के निबटारे के लिए 43 जोन में बांट कर दंडाधिकारी व पुलिस पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गयी है. मेला क्षेत्र में महिला-पुरुष कांस्टेबल सादे लिबास में भी रहेंगे. आपदा प्रबंधन के लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की पांच टीमें लगी हैं.
पांच भाषाओं में रेडियो जिंगल के माध्यम से मिलेंगी जानकारियां
यात्रियों की सुविधा को लेकर पिंडदान एप व वेबसाइट को विकसित किया गया है. इसके माध्यम से तीर्थ यात्रियों को जानकारी मोबाइल पर मिल सकेगी. हेल्प लाइन नंबर भी जारी किया गया है, जो 9266628168 है. पहली बार रेडियो जिंगल के माध्यम से पांच विभिन्न राज्यों की भाषाओं में पितृपक्ष मेले की जानकारी व इंट्रैक्टिव वॉयस रेस्पॉन्स सिस्टम के माध्यम से तीर्थ यात्रियों को सीधे हर विभाग के पदाधिकारी से संपर्क करने की सुविधा दी गयी है. मुकम्मल व्यवस्था के साथ नियंत्रण कक्ष भी बनाये गये हैं. यात्रियों के आस-पास के विभिन्न पर्यटक स्थलों में घूमने के लिए टूर पैकेज की व्यवस्था भी की गयी है. सिटी रिंग बस सेवा के अलावा ऑटो, इ-रिक्शा आदि से इधर-उधर जाने के मार्ग निर्धारण के साथ जिला प्रशासन द्वारा निर्धारित किराया सुनिश्चित किया गया है. इससे अधिक भाड़ा लेने व पकड़े जाने पर फाइन के साथ दंडात्मक कार्रवाई की व्यवस्था है.
मेले के पहले दिन 28 हजार तीर्थयात्री करेंगे कर्मकांड
गया़ बिहार सरकार के साथ जिला प्रशासन की ओर से मेले को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. मंगलवार से 17 दिनों तक मेला परिक्षेत्र व शहर तीर्थ यात्रियों से गुलजार रहेगा. मेले का विधिवत उद्घाटन 17 सितंबर को होगा. उद्घाटन को लेकर विष्णुपद प्रांगण भव्य पंडाल बनाया गया है. यह पंडाल उद्घाटन के लिए पूरी तरह सज-धज कर तैयार है. बीते वर्ष की अपेक्षा प्रशासनिक स्तर पर इस बार व्यवस्था को और बेहतर किया गया है. फल्गु नदी के पश्चिमी तट स्थित देवघाट, गदाधर घाट, गायत्री घाट, संगत घाट पर तीर्थ यात्रियों की भीड़ को काम व नियंत्रित रखने के लिए माड़नपुर बाइपास पुल से श्मशान घाट तक 50-50 मीटर का दो और नया व सुसज्जित घाट बनाया गया है. उक्त बाइपास से देवघाट तक एप्रोच पथ भी बनकर पूरी तरह से तैयार है. इस एप्रोच पथ की चहारदीवारी पर मिथिला व मधुबनी के कलाकार रामायण काल से जुड़ी झांकियों को रंग व पेंट के माध्यम से अंतिम रूप देने में जुटे हैं.
15 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों के आने की संभावना
जिला प्रशासन की मानें, तो 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में 15 लाख से अधिक तीर्थ यात्रियों के आने की संभावना है. इस संभावना को लेकर विष्णुपद सहित अन्य सभी वेदी स्थलों व उसके आसपास के क्षेत्रों के साथ-साथ मेला क्षेत्र से जुड़ने वाले सभी पहुंच पथों पर आवासान, स्वास्थ्य शिविर, पुलिस कैंप, सफाई, पानी, रोशनी, बुनियादी जरूरतों व सुविधाओं की समुचित व्यवस्था प्रशासनिक स्तर से की गयी है.
मेले में शामिल होने के लिए तीर्थयात्रियों का जत्था पहुंचने लगा है. पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर देश के कई अन्य राज्यों से सोमवार की दोपहर तीन बजे तक 30 हजार से अधिक तीर्थयात्री आ चुके हैं. श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य व पंडाजी राजन सिजुआर की मानें, तो सोमवार की देर रात तक 10 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों के और आने की पूरी संभावना है.
पितृपक्ष मेले के पहले दिन 40 हजार से अधिक तीर्थयात्री अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड शुरू करेंगे. श्री सिजुआर ने बताया कि 17 दिनों तक त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले अधिकतर तीर्थयात्री मेला शुरू होने के पहले यहां आ जाते हैं. 17 दिनों तक यहां रहकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड पूरा करते हैं. उन्होंने बताया कि राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित देश के कई अन्य राज्यों के तीर्थयात्री यहां आ चुके हैं.
सभी वेदी स्थलों पर वाटर प्रूफ पंडाल
पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों को पानी व धूप से बचने के लिए जिला प्रशासन व बिहार सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से सभी 54 वेदी स्थलों पर वाटरप्रूफ पंडाल बनाया गया है. इन वेदी स्थलों पर पानी, रोशनी, सफाई, पुलिस कैंप, स्वास्थ्य चिकित्सा शिविर व अन्य बुनियादी सुविधाओं की समुचित व्यवस्था की गयी है. ब्रह्मसत, देवघाट, प्रेतशिला, रामशिला, राम कुंड अक्षयवट, सीता कुंड, गदाधर घाट, एप्रोच पथ के पास बने नवनिर्मित घाट, सूर्यकुंड, उत्तर मानस वेदी समेत अन्य वेदी स्थलों पर वॉटरप्रूफ पंडाल बनाया गया है. गयाजी डैम में तीर्थ यात्रियों को डूबने से बचाने के लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीम भी लगायी गयी है. गांधी मैदान में 2500 बेड़ों की क्षमता वाली बनी टेंट सिटी में भी सभी बुनियादी सुविधाओं की समुचित व्यवस्था की गयी है.
प्रतिदिन फल्गु महाआरती की होगी प्रस्तुति
पर्यटन विभाग जिला कार्यालय सूत्रों के अनुसार, पितृपक्ष मेले के सभी दिन बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के संयोजन में फल्गु नदी के तट पर प्रतिदिन शाम में फल्गु महाआरती की मनमोहक प्रस्तुति होगी. बताया गया कि वाराणसी में आयोजित होने वाली गंगा आरती की तर्ज पर पांच निपुण ब्राह्मणों के समूह द्वारा पितृपक्ष मेला अवधि के दौरान सभी 17 दिन फल्गु महाआरती की प्रस्तुति की जायेगी.
पुनपुन नहीं जाने वाले आज गोदावरी में करेंगे पिंडदान व तर्पण
17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के पहले दिन मंगलवार को गयाजी के गोदावरी सरोवर अथवा पुनपुन नदी में पिंडदान का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, जो श्रद्धालु पुनपुन जाने में असमर्थ होते हैं, गयाजी स्थित गोदावरी सरोवर में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड करने से उन्हें पुनपुन नदी में कर्मकांड करने के समान फल प्राप्त होता है.
भगवान राम भी अपने पिता को कर चुके हैं पिंडदान
नारद पुराण, वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गयाजी में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है. साथ ही पितरों की मुक्ति के लिए मोक्ष धाम में पिंडदान करना सबसे उत्तम कहा गया है. संभवत: यही कारण है कि यहां पिंडदान की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले का आयोजन होते आ रहा है. त्रेता युग से लेकर द्वापर युग से जुड़े देवी-देवताओं के अलावा ऋषि-मुनि व राजा-महाराजाओं ने भी अपने पितरों के उद्धार व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान श्राद्ध कर्म व तर्पण का कर्मकांड किये हैं. इन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम, भरत कुमार, ऋषि भारद्वाज, पितामह भीष्म, राजा युधिष्ठिर, भीम सहित कई देवी-देवताओं व राजाओं ने यहां अपने पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान श्राद्धकर्म व तर्पण किये हैं.
17 दिवसीय कर्मकांड में 54 वेदी स्थलों पर करना होता है पिंडदान
17 दिवसीय कर्मकांड में 54 वेदी स्थलों पर पिंडदान करने का विधान तीर्थ पुरोहितों ने बताया है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण कर्मकांड के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों को तिथिवार पिंडदान करना होता है.
17 सितंबर (भाद्रपद चतुर्दशी)- पुनपुन पांवपूजा या गोदावरी श्राद्ध.
18 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा)- फल्गु स्नान श्राद्ध व पांव पूजा.
19 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के बाद द्वितीया तिथि)- प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबली, उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिव्हालोल व गदाधर का पंचामृत स्नान.
20 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि)- बोधगया के सरस्वती स्नान व पंचरत्न दान, तर्पण, धर्मारण्य, मातंगवापी, व बौद्ध दर्शन.
21 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि)- ब्रह्मसरोवर श्राद्ध, काकबलि श्राद्ध, तारक ब्रह्म का दर्शन व आम्र सिंचन.
22 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि)- विष्णुपद स्थित 16 वेदी में रुद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध व पांव पूजा.
23 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि)- 16 वेदी में कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गाहर्पत्यागनी पद व आहवनयाग्नि पद.
24 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि)- 16 वेदी में सूर्यपद, चंद्र पद, गणेश पद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्नि पद व दघिची पद.
25 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि)- 16 वेदी में कण्वपद मतंग पद, क्रौंच पद, इंद्र पद, अगस्त्य पद, कश्यप पद, गजकर्ण पद, दूध तर्पण व अन्नदान.
26 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि)- राम गया श्राद्ध, सीताकुंड (बालू का पिंड) सौभाग्य दान व पांव पूजा.
27 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी तिथि)- गया सिर, गया कूप (त्रिपिंडी श्राद्ध), पितृ व प्रेत दोष निवारण श्राद्ध.
28 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि)- मुंड पृष्ठ श्राद्ध (आदि गया) धौतपद श्राद्ध व चांदी दान.
29 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि)- भीम गया, गौ प्रचार व गदा लोल श्राद्ध.
30 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि)- विष्णु भगवान का पंचामृत स्नान, पूजन, फल्गु में दूध तर्पण व दीपदान.
01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि)- वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान.
02 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि)- अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन.
03 अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि)- गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य का दक्षीणा व पितृ विदाई.