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Pitru Paksha 2022 in Gaya: गया में ही क्यों किया जाता हैं श्राद्ध कर्म, जानें 10 कारण और महत्वपूर्ण बातें

Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष में श्राद्ध करने पर पूर्वज की आत्मा की शांति मिलती है. पिंडदान व श्राद्ध कर्म करने के लिए देशभर में 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन उनमें बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है.

गया. हिंदू धर्म के लिए पितृपक्ष बेहद खास माना गया है. मान्यता है कि जब लोग अपना शरीर त्याग कर चले जाते हैं, तब उनकी आत्मा की शांति के लिए गयाजी में श्रद्धा से पिंडदान और तर्पण किया जाता है. पितृपक्ष में श्राद्धकर्म करना पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को शक्ति मिलती है और वह शक्ति पितर को परलोक पहुंचाने में मदद करती है. पिंडदान व श्राद्ध कर्म करने के लिए देशभर में 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन उनमें बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है.

1- ब्रह्मा जी ने गयासुर को वरदान दिया था, जो भी लोग गया में पितृपक्ष के अवधि में इस स्थान पर अपने पितर को पिंडदान करेगा उनको मोक्ष मिलेगा.

2 – श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हो गयी थी. इस दौरान सीता जी ने गया में ही दशरथ जी की प्रेत आत्मा को पिंड दिया था. उस समय से यह स्थान को पिंडदान करने तथा तर्पण करने से दशरथ जी ने माता सीता का दिया हुआ पिंडदान स्वीकार किया था.

3- गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितर का स्वर्गवास होता है.

4 – गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितर का अक्षयलोक को प्राप्त होता है. यहां पर पिंडदान करने से ब्रह्महत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है.

5- गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है. यहां पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है. साथ ही यहां ब्राह्मणों को भोजन करने से पितर की तृप्ति होती है.

6- गया में पिंडदान करने के पहले मुंडन कराने से बैकुंठ को जाते है, साथ ही काम, क्रोध, मोक्ष को प्राप्ति होती है.

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7- गयाजी में उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही देते है.

08- गया जी में माता सीता ने तर्पण किया था. गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है.

09- गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं. गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.

10- पितृपक्ष में जो अपने पितर को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियां प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

मो. 8080426594/9545290847

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