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Pitru Paksha 2024: गया में श्रद्धालुओं ने गदाधर भगवान का किया दर्शन-पूजन, जानें फल्गु में दूध-जल से तर्पण का महत्व

Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष मेले के 13वें दिन श्रद्धालुओं ने किया गदाधर भगवान का दर्शन-पूजन किया. एक साथ लाखों दीये के जलने से विष्णुपद व फल्गु तट रोशनी से जगमग रहा.

By Radheshyam Kushwaha | October 1, 2024 9:15 AM
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Pitru Paksha 2024: संजीव/ गयाजी में 17 सितंबर से चल रहे 17 दिवसीय राजकीय पितृपक्ष मेला महासंगम 2024 के 13वें दिन सोमवार को पितरों की जन्म मरण से मुक्ति व उनके मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों श्रद्धालुओं ने त्रिपाक्षिक श्राद्ध विधान के तहत फल्गु नदी में दूध से तर्पण किया. इसके बाद गदाधर भगवान का दर्शन-पूजन कर उन्हें पंचामृत से स्नान कराया. इसके अलावा एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन व 17 दिन के लिए देश के विभिन्न राज्यों से हजारों श्रद्धालुओं ने भी फल्गु नदी, देवघाट, विष्णुपद, सीता कुंड, ब्रह्म सरोवर, रामसरोवर, अक्षयवट, प्रेतशिला समेत कई अन्य वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड कर अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना की.

पितरों की मोक्ष प्राप्ति की कामना की

श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के वरीय सदस्य मणिलाल बारिक ने बताया कि पितृपक्ष मेले के आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को धार्मिक व पौराणिक विधान के तहत पितरों की मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों श्रद्धालुओं ने फल्गु में दूध से तर्पण किया. विष्णुपद मंदिर परिसर में स्थित भगवान गदाधर जी को पंचामृत से स्नान कराकर उनका दर्शन-पूजन किया. श्री बारिक ने बताया कि त्रिपाक्षिक श्राद्ध विधान व पौराणिक मान्यता के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को श्राद्ध के लिए दूध से तर्पण किया जाता है. श्रद्धालुओं ने इस विधान के तहत फल्गु में दूध व जल से तर्पण किया. श्रद्धालुओं द्वारा देव तर्पण चावल डालकर, ऋषि तर्पण जौ डालकर व पितृ तर्पण तिल डालकर किया गया. उन्होंने बताया कि इस 17 दिवसीय श्राद्ध में पिंडदान का विधान नहीं है. उन्होंने धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बताया कि गया तीर्थ में किया गया जप-पाठ भी अक्षय हो जाता है.

दीप जलाकर मनायी गयी पितृ दीपावली

श्री बारिक ने कहा कि इस तिथि को शाम में दीपदान का विधान है. इस विधान के तहत पितृपक्ष मेले के त्रयोदशी तिथि को दीप जलाकर पितृ दीपावली मनाने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वहन आज भी पिंडदान के लिए देश के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालु कर रहे हैं. इस परंपरा के तहत सोमवार को शाम ढलने के साथ देश के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालु दीप जलाकर पितृ दीपावली मनायी. श्रद्धालुओं ने विष्णुपद मंदिर व फल्गु तट के घाटों पर दीप जलाकर पितृ दीपावली मनायी व पितरों के साथ अपनी खुशियां साझा कीं. एक साथ लाखों दीये के जलने से विष्णुपद क्षेत्र के साथ-साथ फल्गु तट का पूरा क्षेत्र शाम से देर रात तक जगमग होता रहा.

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आज वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गौ दान का विधान

श्री बारिक ने बताया कि अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि) को वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान, दो अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि) को अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन व तीन अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि) को गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य की दक्षिणा व पितृ विदाई का विधान है.

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