Pitru Paksha in Gaya: संजीव/ गया. पितरों का मुक्तिधाम तीर्थस्थली गयाजी में 17 सितंबर से आयोजित पितृपक्ष मेले के नौवें दिन बुधवार को देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों तीर्थयात्रियों ने अपने पितरों के मोक्ष व उनके जन्म मरण से मुक्ति की कामना को लेकर श्राद्ध विधान के तहत 16 वेदी के कण्व पद, मातंग पद, क्रोंच पद, अगस्त्य पद, इंद्र पद, कश्यप पद, गजकर्ण पद श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड अपने कुल पांडा के निर्देशन में संपन्न किया. वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन वेदी स्थलों पर पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को ब्रह्म लोक, विष्णु लोक व इंद्रलोक की प्राप्ति होने के साथ-साथ उनके आत्मा को शांति व जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है.
श्राद्ध के नौवें दिन विधान
श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष सह गयापाल पंडा जी शंभू लाल विट्ठल ने बताया कि 17 दिवसीय त्रिपाक्षिक श्राद्ध के नौवें दिन विधान के तहत देश के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालुओं ने विष्णुपद मंदिर परिसर स्थित 16 वेदी स्थल के कण्व पद, क्रौंच पद, इंद्र पद, अगस्त्य पद, मतंग पद व कश्यप पद पर श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड पूरा किया. उन्होंने बताया कि मतंग पद, क्रौंच पद, अगस्त्य पद व कश्यप पद पर श्राद्ध व पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों का ब्रह्मलोक में गमन होता है.
गया में श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड
इंद्र पद पर श्राद्ध से पितरों को इंद्रलोक की प्राप्ति होती है. उक्त वेदी पर श्राद्ध की बेला में अपनी माता शांता की उपस्थिति में भारद्वाज ऋषि ने पिंड अर्पण किया था. इधर, एक दिन के लिए पिंडदान का कर्मकांड के निमित्त देश के विभिन्न राज्यों से आये एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भी फल्गु तीर्थ, सीता कुंड, देवघाट, विष्णुपद, अक्षयवट, प्रेतशिला सहित कई अन्य वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड संपन्न किया.
सीता कुंड व राम गया वेदी स्थलों पर आज पिंडदान का विधान
श्री विट्ठल ने बताया कि त्रिपाक्षिक पितृपक्ष मेले के दसवें दिन 26 सितंबर को फल्गु नदी के पूरब तट स्थित राम गया व सीता कुंड वेदी स्थलों पर पिंडदान, सौभाग्य दान व पांव पूजा का विधान है.