गयाजी में श्राद्ध कर पितरों से सुख-समृद्धि का आशीष लेने का सुअवसर है पितृपक्ष, जानें जरूरी बातें
Pitru Paksha 2022: आज प्रतिपदा श्राद्ध है. अगर आपको अपने नाना-नानी या उनके परिवार के किसी मृत व्यक्ति की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो आप प्रतिपदा तिथि पर उनके लिए श्राद्ध कर सकते हैं.
सनातन मान्यता है कि पितृपक्ष मेले में पितरों को पिंडदान व तर्पण से मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसी ही भावना से ओतप्रोत गयाजी का पितृपक्ष मेला स्वर्गारोहण के द्वार का मार्ग प्रशस्त करता है, तभी तो गया में सालों भर पितृ भक्तों का आगमन बना रहता है. आस्था, विश्वास और जनसरोकार से जुड़े गया के पितृपक्ष मेला को वर्ष 2014 में राजकीय मेले का दर्जा दिया गया है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होता है और समापन आश्विन मास की अमावस्या पर होता है, जो इस बार 10 सितंबर से 25 सितंबर (महालया) तक रहेगा. आश्विन अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या भी कहते है
11 सितंबर दिन रविवार : आज प्रतिपदा तिथि है. आज श्राद्ध कर्म, तर्पणादि आरंभ होगा. सपितृपक्ष में ब्रह्मभोज के साथ पितरों के निमित्त यथासंभव दान-पुण्य करना अति पुण्यदायी है.
अगर किसी को अपने पूर्वजों के निधन की तिथि ज्ञात नहीं है, तब हिंदू धर्म शास्त्रों में कुछ विशेष तिथियां बतायी गयी हैं, जिस दिन पितरों के लिए श्राद्ध करना उत्तम माना गया है. प्रतिपदा श्राद, पंचमी श्राद, नवमी श्राद, एकादशी और द्वादशी श्राद्ध, त्रयोदशी और चतुर्दशी श्राद्ध महत्वपूर्ण तिथि है.
पितृ मोक्ष धाम गया में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष मेला का आयोजन होता है. निरंजना और मोहाने जैसे दो पठारी नदियों में गुप्त सरस्वती ‘विशाला’ के महासंगम के उपरांत उद्गमित अंत: सलिला फल्गु के किनारे गयाजी में पितृपक्ष मेला युग पिता ब्रह्माजी द्वारा प्रारंभ किया गया बताया जाता है.
पितर के निमित्त पिंडदान करने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है. सनातन मान्यता है कि पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक अपने पितरों का तर्पण करने से वे प्रसन्न होते हैं तथा अपनी संतानों को आशीर्वाद देकर उसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ अपने लोक को वापस चले जाते हैं. इस कर्म से पितृ ऋण भी उतरता है. हम इस काल में अपने पितरों का विधिपूर्वक श्राद्ध कर उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांग लेते है.