गया नगर निगम में वसूली घोटाला! 2014-15 के टेंडर में गड़बड़ी पर कार्रवाई शुरू, निगम कर्मचारियों से होगी 7.12 लाख की वसूली
गया नगर निगम में 2014-15 में केदारनाथ मार्केट से वसूली के मामले में कार्रवाई शुरू हो गई है. वसूली में कई खामियां होने के बावजूद हर स्तर पर ईमानदारी दिखाने की कोशिश की जा रही थी. अब इस मामले में निगम के कर्मचारियों से 7.12 लाख रुपए की वसूली की जाएगी.
गया नगर निगम हमेशा से ही कई तरह के विवादों के कारण चर्चा में रहा है. बाजार से पैसे की वसूली और निगम कोष में कर्मचारियों द्वारा कम राशि जमा करने के मामले कई जगहों पर सामने आ चुके हैं. वहीं अब निगम में वर्ष 2014-15 में केदारनाथ मार्केट में किए गए विभागीय टेंडर को लेकर काफी चर्चा है. विभागीय वसूली का जिम्मा संभाल रहे टैक्स कलेक्टर शत्रुघ्न सिंह को हर दिन 22,480 रुपए जमा करने थे. लेकिन, कर्मचारी ने एक साल में 9,81,725 रुपए कम जमा किए हैं. इस मामले में विभाग ने तीन कर्मचारियों से वसूली करने को कहा है. इसमें उस वक्त के लेखा पदाधिकारी, मार्केट प्रभारी व टैक्स कलेक्टर शामिल हैं.
पहले की की गई कार्रवाई भी संदेह के घेरे में
हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई करते हुए विभाग के अपर सचिव राशिद इकबाल ने आदेश में कहा है कि टैक्स कलेक्टर से वसूली की प्रक्रिया तब शुरू नहीं की गई थी, जब वे नौकरी पर थे, जबकि नगर आयुक्त ने नोटिस देकर वसूली प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था. इस मामले में अब उनके सेवानिवृत्त होने के बाद कार्रवाई शुरू की गई है, जिससे उस समय की गई कार्रवाई संदेह के घेरे में आ गई है.
7,11,845 रुपये की होगी वसूली
टैक्स कलेक्टर ने बताया है कि माह में एक दिन मार्केट बंद रहता है. इस दिन के पैसों को जोड़ कर निगम से मांगा जा रहा है. इसमें एक दिन बंद के हिसाब से 2,69,880 रुपये घटा कर 7,11,845 रुपये की वसूली की जाये. उन्होंने कहा कि तीन स्तर पर की गयी लापरवाही के चलते उस वक्त के लेखा पदाधिकारी, मार्केट प्रभारी व टैक्स कलेक्टर से बराबर वसूल की जाये.
यहां पर उठाये जा रहे सवाल
निगम के सैरातों में बहुत जगहों पर टेंडर में लोगों की रुचि नहीं दिखाने पर वसूली की जिम्मेदारी विभागीय तौर पर कर्मचारियों को दी जाती है. इन्हें एक निश्चित राशि जमा करने का निर्देश दिया जाता है. वसूली के लिए कोई सहयोगी भी निगम से नहीं मिलता है. इस स्थिति में देखा जाये, तो अब तक कई बार विभागीय वसूली की जिम्मेदारी संभालने वाले कर्मचारियों ने निर्धारित राशि से कम पैसा निगम में जमा कराया है. अब इनके दिमाग में यह आया है कि उनसे भी वसूली का आदेश कभी-न-कभी आ सकता है.
लेखा शाखा को मतलब नहीं
लेखा पदाधिकारी ने कहा कि सैरात के टेंडर के पैसों का जमा कैश काउंटर पर होता है. इसका हिसाब राजस्व शाखा रखती है. वेतन बनाने व कटौती का कागजी काम स्थापना से होता है. इस मामले में किसी तरह का मतलब लेखा शाखा को नहीं है. उन्होंने कहा कि ऑडिट रिपोर्ट में उठाये गये सवाल के बाद ही लेखा शाखा को सारी बातों की जानकारी होती है. इस मामले में भी ऑडिट के उठाये गये सवाल का जवाब महालेखाकार कार्यालय को भेज दिया गया है.