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वार्ड तक पहुंचने से लेकर जांच में मदद तक, गया के अस्पतालों में हर काम का रेट फिक्स

गया के सरकारी अस्पताल में मरीजों और उनके परिजनों को सुविधाओं के लिए पैसे देने पड़ते हैं. सभी अस्पतालों में यही व्यवस्था है, सदर अस्पताल में थोड़ी कम, जबकि एएनएमएमसीएच में मरीजों को शिफ्ट करने से लेकर शवों को पोस्टमार्टम के लिए पहुंचाने तक, हर जगह पैसे का खेल चलता है.

Hospitals In Gaya: गया के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्सिंग व कुछ चीजों को छोड़ लगभग जिम्मेदारी आउटसोर्सिंग से तैनात कर्मचारी को संभालने के लिए दे दी गयी है. अस्पतालों में हालात यह है कि सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो गया है. हर वक्त सिविल सर्जन व अन्य जिम्मेदार अधिकारी के पास आउटसोर्सिंग के क्रिया-कलाप की शिकायत पहुंचते रहती है. हर जगह से मरीज व परिजन से सुविधा के नाम पर पैसा वसूलने का भी मामला सामने आते रहता है.

सदर हॉस्पिटल में सिविल सर्जन के मौजूद रहने के चलते कुछ कम शिकायत मिलती है, तो अनुमंडल अस्पताल, पीएचसी से हर दिन शिकायत अधिकारी के पास पहुंचती है. एएनएमएमसीएच में व्यवस्था व संसाधनों पर किसी का नियंत्रण ही नहीं दिखता है. ऐसा नहीं होने से लोगों तक सुविधा आसानी से नहीं नहीं मिल पाती है. इतना ही नहीं, हर तरह की व्यवस्था यहां पाने के लिए मरीज या फिर उनके परिजन को नाजायज रूप से पैसा देना पड़ता है. यहां पर पैसे की मांग खुलेआम मरीज व परिजन से की जाती है.

अस्पताल के इमरजेंसी से मरीज वार्ड में शिफ्ट करने, कैथेटर लगाने, शव को पोस्टमार्टम रूम तक पहुंचाने, जांच आदि में सहयोग करने, लड़का-लड़की के जन्म होने पर नवजात को परिजन को देने आदि में पैसा वसूला जाता है. यह हर अस्पताल में होता है. लेकिन, छोटे अस्पतालों में धंधा खुलेआम नहीं हो पाता है. चोरी-छिपे ही यह काम कर्मचारी करते हैं. इतना ही नहीं, जहर खाये अगर कोई मरीज पहुंचता है, तो उसके इलाज के लिए 10 म्युकैन जेल भी परिजन से ही मंगवाया जाता है, जबकि एक मरीज को तीन से ही काम चल जाता है.

कोई नहीं करता अपना काम

अपनी जिम्मेदारी का काम छोड़ कर हर काम कर्मचारी व आउटसोर्सिंग के लोग व्यस्त रहते हैं. इसके चलते यहां पर लोगों को सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. आउटसोर्सिंग के कर्मचारी यहां के स्थायी कर्मचारी के पर्सनल काम करने में ही अपना ड्यूटी टाइम पूरा कर लेते हैं. एएनएमएमसीएच में इसी कारण हर दिन मरीज के परिजन और कर्मचारियों के बीच झंझट की बात सामने आती है.

प्राइवेट स्टाफ वसूलते हैं पैसे

  • इमरजेंसी से वार्ड में पहुंचाने का : 100-200 रुपये
  • कैथेटर लगाने का : 100- 150 रुपये
  • शव को पोस्टमार्टम रूम पहुंचाने का : 200-300 रुपये
  • जांच आदि में सहयोग करने का : 100 रुपये
  • लड़के के जन्म होने पर : 800-2000 रुपये
  • लड़की के जन्म होने पर – 500-1000 रुपये

पहले भी खुल चुका है बड़ा मामला

सरकारी दवा मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में पैसा लेकर देने का मामला पहले खुल चुका है. इतना ही नहीं, यहां से दवा चोरी करने की बात भी उजागर हुई. कुछ दिन पहले ही मरीज को बाहर ले जाकर ऑपरेशन करने में 35 हजार रुपये की मांग डॉक्टर ने कर दी. यह मामला सामने आने पर संबंधित डॉक्टर को स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया गया. इससे पहले भी इंज्यूरी, जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र देने पर पैसा लेने का मामला उजागर हो चुका है.

हर हाल में पैसे लेने पर लगायी जायेगी रोक

अस्पताल में तैनात कर्मियों की ओर से मरीज या उनके परिजन से पैसे लेने का मामला बार-बार सामने आ रहा है. गाइनी, इमरजेंसी के साथ वार्ड में भी यह मामला उजागर हुआ है. इस मामले में दोषी कर्मचारी पर कार्रवाई की गयी है. इतना ही नहीं, पैसे के मामले में डॉक्टर तक को स्पष्टीकरण देने का लेटर दिया गया है. अस्पताल में कुछ भी सेवा का पैसा नहीं लिया जाता है. अब विभागाध्यक्षों को पत्र देकर उनसे कड़ाई करने को कहा जायेगा. ताकि, तत्काल स्थानीय वार्ड में ही इसका निबटारा के साथ कार्रवाई हो सके.

डॉ एनके पासवान, प्रभारी अधीक्षक सह उपाधीक्षक, एएनएमएमसीएच

हर जगह से मिलती है शिकायत

सदर हॉस्पिटल में उनके मौजूद रहने से इधर-उधर करने में नहीं बनता है. पीएचसी, अनुमंडल अस्पताल से हर वक्त आउटसोर्सिंग के बारे में शिकायत मिलती रहती है. संबंधित एजेंसी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. लेकिन, स्थानीय स्तर पर प्रभारी इस जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं करेंगे, तब तक यह स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है. लोगों को भी इस मामले में सतर्क रहना होगा. लोगों को यह साफ तौर मानना होगा कि सरकारी अस्पतालों में आने के बाद किसी को पैसा नहीं देना है. इसके लिए अपने साथ रहे लोगों को जागरूक करना है. सरकार की ओर से आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सारी व्यवस्था दी गयी है.

डॉ रंजन कुमार सिंह, सिविल सर्जन

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