बिहार के वाल्मिकी टाइगर रिजर्व (VTR) में अंडे से निकलकर 125 घड़ियालों ने अपनी आंखे खोली है. बताया जा रहा है कि इस साल गंडक नदी के किनारे घड़ियालों के 9 घोसले मिले थे. वन एवं पर्यावरण विभाग, बिहार सरकार और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया समेत कैलिफोर्निया लॉस एंजिल्स जू की देखरेख में इसमें से 125 बच्चों का जन्म हुआ है. इन बच्चों को ढ़ाई महीने का होने के बाद गंडक नदी में छोड़ दिया गया. बताया जाता है कि मार्च के महीने में मादा घड़ियाल नदी के पास बालू के ऊंचे टीले पर घोंसला बनाकर अंडे देती है. इसके बाद, करीब दो महीने में अंडे से बच्चे बाहर आते हैं. घड़ियाल के बच्चे जब अंडे से बाहर आने लगते हैं तो एक अजीब सी आवाज आने लगती है.
गंडक में पाये जाने वाले घड़ियाल दरअसल विलुप्त हो चुके डायनासोर के प्रजाति के हैं. ये भी देश और दुनिया में विलुप्त होने के कगार पर हैं. हालांकि, बिहार सरकार और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के प्रयास के कारण गंडक नदी में इनकी संख्या काफी अच्छी हो रही है. 2016 में किये गए सर्वे में गंडक में इनकी संख्या करीब एक दर्जन थी. जबकि, वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर 500 से ज्यादा हो गयी है. आंकड़ों के मुताबिक चंबल नदीं के बाद अब सबसे ज्यादा घड़ियाल गंडक नदी में है.
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वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अनुसार एक स्वस्थ्य घड़ियाल करीब 70 वर्ष तक जिंदा रहता है. मूल रुप से ये मगरमच्छ के तरह का जीव है. मगर, अपनी कुछ अलग शारीरिक बनावट के कारण ये उनसे अलग हो जाता है. घड़ियाल का मुंह घड़ेनुमा आकृति बनाता है. साथ ही, ये आगे से चौड़ा होता है. यानि अंग्रेजी के यू शेप में खुलता है. जबकि, मगरमच्छ का मुंह अंग्रेजी के वी शेप में खुलता है. हालांकि, बड़ी परेशानी ये है कि घड़िलाय की सर्वाइवल रेट काफी कम है. इसकी सर्वाइवल रेट करीब दो प्रतिशत है. जुलाई के महीने में नदी के तेज बहाव में ज्यादातर बच्चों की मौत हो जाती है.