Menstrual Hygiene Day: सहेली कक्ष की बदौलत किशोरियों के साथ किशोर भी हो रहे जागरूक

Menstrual Hygiene Day: पीरियड्स के दौरान मेन्स्ट्रूअल हाइजीन न रखना औरतों की मौत का दुनिया में पांचवा सबसे बड़ा कारण है. वहीं, 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल सैनिटरी पैड न होने की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं. वहीं बिहार के सरकारी स्कूलों में बनें सहेली कक्ष से छात्राओं को जागरूक किया जा रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 28, 2023 1:04 AM
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जूही स्मिता,पटना. मैं माहवारी के कारण हर महीने कम से कम 3-4 दिन स्कूल नहीं जा पाती थी जिससे मेरी पढ़ाई का काफी नुकसान होता था, लेकिन सहेली कक्ष के निर्माण के बाद अब मुझे कोई समस्या नहीं होती. पीरियड के दौरान जरूरत पड़ने पर मैं वहां कुछ देर आराम कर फिर से कक्षा में बैठ पाती हूं. साथ ही, वहां लगे वेंडिंग मशीन में 1 रुपये के दो सिक्के डालकर सैनिटरी पैड भी ले सकती हूं. यह कहना है पूर्णिया जिले के कसबा प्रखंड अंतर्गत आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय गढ़बनैली की आठवीं की छात्रा ऋतु कुमारी का.

पूर्णिया और सीतमढ़ी में 20-20 सरकारी स्कूलों में छात्राएं ले रही लाभ

बिहार के पूर्णिया और सीतामढ़ी के 20-20 सरकारी स्कूलों में बनें सहेली कक्ष का छात्राएं लाभ ले रही है. इन स्कूलों में इसके लिए नोडल शिक्षक भी नियुक्त किये गये हैं. कसबा प्रखंड की बीइओ संगीता कुमारी और कसबा नगर परिषद की मुख्य पार्षद छाया कुमारी ने सहेली कक्ष जैसी अनूठी पहल की सराहना की है .उन्होंने इसके बारे में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने का आह्वान करते हुए कहा कि सभी मध्य विद्यालयों और उच्च विद्यालयों में लड़कियों को ऐसी सुविधा होनी चाहिए ताकि वे बिना किसी भय व संकोच के अपनी पढ़ाई-लिखाई जारी रख सकें.

बेटियों के उन दिनों में कारगर साबित होगा सहेली कक्ष

सहेली कक्ष के उद्देश्यों में यूनिसेफ बिहार के वाश अधिकारी सुधाकर रेड्डी ने कहा कि यह किशोर लड़कियों को स्कूल के दौरान माहवारी से जुड़ी समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटने में मदद करने के लिए स्थापित किया गया है. यदि उन्हें माहवारी के दौरान किसी भी प्रकार की परेशानी हो रही हो तो स्कूल परिसर में एक ऐसा कमरा होना चाहिए जहां वे बिना संकोच जा सकें और स्थिति सामान्य होने तक आराम कर सकें. यदि उन्हें सैनिटरी पैड बदलने की आवश्यकता है, तो वे आसानी से उपलब्ध पैड का भी उपयोग कर सकें. आवश्यकतानुसार वे नोडल शिक्षक से परामर्श भी ले सकती हैं. चूंकि 28 दिनों के औसत मासिक धर्म चक्र में कभी भी माहवारी आ सकती है, इसलिए यह किसी भी आपात स्थिति से निपटने में भी कारगर है.

अनुकरणीय मॉडल के तर्ज पर किया जा रहा विकसित

उन्होंने आगे कहा कि यूनिसेफ, फिया ( पार्टनरिंग होप इनटू एक्शन) फाउंडेशन और बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के सहयोग से पूर्णिया और सीतामढ़ी जिलों के 20-20 स्कूलों में बेहतर वॉश (जल, सफाई एवं स्वच्छता) सेवाओं के लिए मिलकर काम कर रही है जिससे उन्हें अनुकरणीय मॉडल के रूप में विकसित किया जा सके. इस संदर्भ में सहेली कक्ष एक महत्वपूर्ण पहल है जो सभी 40 विद्यालयों में अच्छी तरह से चल रहा है.

सहेली कक्ष में मिलती है यह सुविधा

एमएचएम सुविधाओं से सुसज्जित सहेली कक्ष में एक बिस्तर और कुर्सी के अलावा आपातकालीन यूनिफार्म (एक जोड़ी स्कर्ट), एक सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और अलग से सैनिटरी पैड के रिजर्व स्टॉक का प्रावधान किया गया है. साथ ही, इस्तेमाल किये गये पैड के सुरक्षित निपटान के लिए एक इलेक्ट्रिक इंसीनरेटर (पैड भस्मक) की भी व्यवस्था है. इसके अतिरिक्त माहवारी से जुड़ी सामान्य समस्याओं और उनसे निपटने के प्रभावी तरीकों सहित पीरियड्स के दौरान उपयुक्त आहार व परहेज़ संबंधी विस्तृत जानकारियों को कक्ष की दीवारों पर लिखा गया है. साथ ही, दीवारों को माहवारी संबंधी सशक्त उदाहरण और पूरक चित्रों से सजाया गया है ताकि माहवारी के बारे में प्रचलित मिथकों और गलत धारणाओं को दूर किया जा सके.

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