नक्सल क्षेत्र की बेटियों में बढ़ा सेना में जाने का जुनून, सूरज उगने से पहले ही मैदान में बहाती हैं पसीना

अब युवकों के साथ युवतियां या यूं कहें कि बेटियां सरहद की रक्षा के लिए तैयार हो रही हैं. दरअसल, युवतियों में खाकी वर्दी पहनने की यह दीवानगी देश के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है. लिहाजा प्रतिदिन वर्दी पहनने के जुनून में युवतियां सूरज उगने से पहले कई मीलों को मिनटों में लांघ लेती हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 21, 2022 8:35 AM

विनय सिंह किंकर औरंगाबाद. देश की सरहद पर तैनात जवान हर रोज जिंदगी- मौत से आंख मिचौली करते हैं. वैसे भी सेना की नौकरी काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है. कब दुश्मनों की गोली सीने को पार कर जाए, कहा नहीं जा सकता. इसके बावजूद सरहद की रक्षा के लिए युवा लालायित रहते हैं. अब युवकों के साथ युवतियां या यूं कहें कि बेटियां सरहद की रक्षा के लिए तैयार हो रही हैं. दरअसल, युवतियों में खाकी वर्दी पहनने की यह दीवानगी देश के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है. लिहाजा प्रतिदिन वर्दी पहनने के जुनून में युवतियां सूरज उगने से पहले कई मीलों को मिनटों में लांघ लेती हैं.

बेटियों की तैयारियों को देखा जा सकता है

औरंगाबाद जिले के विभिन्न प्रखंडों में बेटियों की तैयारियों को देखा जा सकता है. खासकर नक्सल प्रभावित इलाके मदनपुर प्रखंड के लगभग हर गांव की बेटियां सेना व पुलिस में नौकरी के लिए तैयारी कर रही हैं. इन्हें डॉक्टर, इंजीनियर और अधिकारी बनने से कहीं ज्यादा पहली पसंद आर्मी व अर्धसैनिक बल है.

युवक-युवतियों को ट्रेनिंग

मदनपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित पड़ाव मैदान जाने पर आपको इनके जुनून का अंदाजा लग जायेगा. यहां प्रतिदिन सेना और पुलिस के लिए न केवल दौड़, बल्कि ऊंची व लंबी कूद, गोला फेंक के साथ-साथ तमाम तरह की कसरत करते सुबह-शाम युवतियों को देखा जा सकता है. इस इलाके के सेना के जवान छुट्टी में घर आते हैं, तो वे युवक-युवतियों को ट्रेनिंग भी देते हैं. इस ट्रेनिंग से उन्हें काफी फायदा भी मिलता है.

मुख्य बातें

  • सरहद पर पहुंचने की ललक में दौड़ जाती हैं कई मील

  • औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के कई गांवों की युवतियां बिहार पुलिस में दारोगा से लेकर सेना में लेफ्टिनेंट बन कर रहीं हैं देश की सेवा

  • यहां के रहनेवाले सेना के जवान छुट्टी में घर आने पर तैयारी में जुटे युवकयुवतियों को देते हैं प्रशिक्षण

  • डॉक्टर, इंजीनियर और अधिकारी नहीं, पहली पसंद आर्मी और अर्धसैनिक बल में जाना

  • पड़ाव मैदान में अभ्यास करतीं बेटियां

  • नक्सल प्रभावित जुड़ाही गांव की लेफ्टिनेंट कर्नल स्वाती शुभम.

कोई दारोगा तो कोई लेफ्टिनेंट

मदनपुर के नक्सल प्रभावित आजन गांव की प्रीति कुमारी, पूजा कुमारी, रानीगंज की श्वेता कुमारी, मदनपुर की मीना कुमारी, लोहारसी की मधु कुमारी बिहार पुलिस में फिजिकल की परीक्षा पास कर चुकी हैं और आगे की तैयारी में जुटी हुई हैं. वहीं, बेरी पंचायत के रुनिया गांव के उपेंद्र सिंह की पुत्री लवली कुमारी दारोगा हैं.

कुछ लड़कियां सेना में भी हैं

कुछ लड़कियां सेना में भी हैं. यहां की लड़कियां खाली समय में कोचिंग व घर में सामान्य ज्ञान और गणित का हिसाबकिताब लगाती रहती हैं. सभी ने अपनी डेली रूटीन तैयार कर ली है. यहां की कई लड़कियां बिहार पुलिस में सिपाही से लेकर दारोगा तक हैं. मदनपुर के गांव जुड़ाही की बेटी स्वाति शुभम भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट हैं.

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