वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सोमवार को प्रभात खबर कार्यालय में हुए ‘प्रभात संवाद’ कार्यक्रम में राजनीति से लेकर बिहार की आर्थिक सेहत तक पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि देश और राज्य में अच्छे नेता आएं, इसके लिए मतदाताओं को ही पहल करनी होगी. उनका शिक्षित होना जरूरी है. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की भेदभाववाली नीति के कारण केंद्र प्रायोजित योजनाओं की राशि भी समय पर नहीं आ रही है. समग्र शिक्षा के तहत नियोजित शिक्षकों को वेतन समय पर मिले, इसके लिए भी राज्य सरकार को अपने खजाने से व्यवस्था करनी पड़ रही है.
हाल ही में बिहार में केंद्रीय जांच एजेंसियों के छापे पर उन्होंने कहा कि यह पॉलिटिकल एक्शन है. बिहार की आर्थिक स्थित पर उन्होंने कहा कि प्रकृति ने बिहार को बहुत कुछ नहीं दिया है. हमारे पास न तो खनिज संपदा है और न ही ज्यादा हरित क्षेत्र. राज्य का बड़ा भू-भाग बाढ़ प्रभावित हैं. सीमित संसाधन होते हुए भी राज्य विकास के कई मानकों पर देश में अव्वल रहा है. आर्थिक मामले के राष्ट्रीय औसत को प्राप्त करने के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा या विशेष सहायता मिलनी चाहिए.
सवाल: वर्ष 2040 तक बिहार को आप कहां खड़ा पाते हैं?
उत्तर – इसका सटीक अनुमान लगाना तो मुश्किल, लोगों में जागृति आ रही है… बिहार 2040 तक कहां रहेगा, यह सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों पर निर्भर करता है. इसलिए सटीक अनुमान लगाना असंभव है. राज्य का काफी विकास हुआ है. लोगों में जागृति आ रही है और आनी भी चाहिए. बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि जागृति किस दिशा में आती है. सकारात्मक या नकारात्मक. राजनीति करने वाले सही व्यक्ति हों या गलत, देश या सरकार वही चलायेंगे. पता नहीं क्यों बुद्धिजीवी लोग राजनीति को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं अपना रहे हैं. ज्यादातर लोग राजनीति की बात सिर्फ टाइम पास करने के लिए करते हैं. ऐसे लोग शायद अपना वोट डालने भी जाते हैं, इसमें भी संदेह ही है. बुद्धिजीवी लोगों को राजनीति को सकारात्मक रूप में लेना होगा. राजनीति से मुंह मोड़कर वे किसके लिए मैदान खाली छोड़ रहे हैं? इस बारे में उन्हें सोचना होगा. अच्छे लोग राजनीति में नहीं आयेंगे तो, दूसरी प्रवृत्ति के लोगों के लिए विधायक-सांसद बनने का रास्ता और आसान हो जाता है. लोकतंत्र में राजतंत्र वाली बात नहीं है, इसमें जनता के हिसाब से नीति बनती और चलती है. लोग कहते हैं कि विवादित लोग सांसद-विधायक बन गये, पर सवाल उठता है कि उन्हें किसने चुना? मतदाता शिक्षा ही चुनाव सुधार का मूल है. जहां लोग जाति देख वोट देते हैं, तो वहां कैसे सुधार की उम्मीद कर सकते हैं.
सवाल: बिहार को विशेष दर्जा की जरूरत क्यों है?
उत्तर – राज्य का 73 फीसदी भू-भाग बाढ़ प्रभावित, यहां प्राकृतिक संसाधनों की घोर कमी राज्य में जब से नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी है, तभी से हमलोग विशेष दर्जे की मांग करते आ रहे हैं. बिहार ने शासन की दृष्टि से विश्वसनीयता स्थापित की है. राज्यों की प्रगति मापने के अलग-अलग मानक हैं. इन मानकों पर पहले बिहार की स्थिति अच्छी नहीं थी. अब राष्ट्रीय स्तर के कई मानकों पर यह प्रमाणित हो चुका है कि बिहार ने सीमित संसाधनों के बावजूद अच्छी प्रगति की है. भौगोलिक दृष्टिकोण के मानक पर विचार करें तो बिहार के 73% भूभाग बाढ़ से प्रभावित रहता है. राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की घोर कमी है. राज्य में न तो किसी तरह की खान-खादन है, न ही समुद्री किनारा. इसके बवाजूद विकास दर के मानक पर देश के कई विकसित राज्यों से हम आगे हैं. कई मानकों पर देश में बिहार अव्वल है. हालांकि, बिहार गरीबी और प्रति व्यक्ति आय के मामले में पीछे है. इसके लिए कहीं से भी राज्य की जनता या सरकार दोषी नहीं है. इसलिए बिहार को विशेष दर्जे की दरकार है. पूरी क्षमता के साथ काम करने के बाद भी आर्थिक मोर्चे पर राज्य पीछे रह जाता है. विशेष राज्य की मांग हमारी संवैधानिक अनिवार्यता है. केंद्र सरकार ने योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया है. नीति आयोग में विशेष राज्य के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है तो हमें विशेष सहायता ही दीजिए.
सवाल: क्या अब योजनाओं के पैसे देने में केंद्र लेट लतीफी कर रहा है?
उत्तर- केंद्र बिहार के साथ भेदभाव कर रहा है केंद्र बिहार के साथ भेदभाव कर रहा है. समग्र शिक्षा अभियान की राशि में केंद्र लगातार बदलाव कर रहा है. पहले इस योजना के लिए राज्य सरकार को सिर्फ 10 प्रतिशत ही देना होता था, केंद्र सरकार 90% राशि देती थी, जिसे बदलकर 40 और 60 का रेशियो कर दिया गया. इसके बावजूद समय पर पैसे नहीं आते. अगर बात वर्ष 2021-22 की करें, तो समग्र शिक्षा अभियान में केंद्र से बिहार को केंद्रांश के रूप में 10500 करोड़ मिलने थे और बिहार को 3500 करोड़ राज्यांश देना था. हुआ ठीक उसका उल्टा. राज्य सरकार ने शिक्षकों को समय पर वेतन मिले इसके लिए अपने खजाने से 10500 करोड़ दिये और केंद्र ने महज 3500 करोड़. वृद्धजन और विधवा पेंशन योजना की राशि नये वित्तीय वर्ष के पांच महीने गुजरने के बाद भी नहीं आयी.