57 वर्षों से नशामुक्ति का अलख जगा रहे पहलवान

अखाड़े में आने से पहले नशा छोड़ने का लेना होता है संकल्प गोपालगंज : उचकागांव प्रखंड के श्यामपुर गांव में पिछले करीब 57 वर्षों से दर्जनों पहलवान नशामुक्ति का अलख जला रहे हैं. गांव में प्रतिदिन सुबह में कुश्ती का अखाड़ा सजता है और पहलवान दांव-पेच सीखते हैं. अखाड़े का नियम है कि प्रत्येक पहलवान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2017 4:07 AM

अखाड़े में आने से पहले नशा छोड़ने का लेना होता है संकल्प

गोपालगंज : उचकागांव प्रखंड के श्यामपुर गांव में पिछले करीब 57 वर्षों से दर्जनों पहलवान नशामुक्ति का अलख जला रहे हैं. गांव में प्रतिदिन सुबह में कुश्ती का अखाड़ा सजता है और पहलवान दांव-पेच सीखते हैं. अखाड़े का नियम है कि प्रत्येक पहलवान नशामुक्त रहेंगे और दूसरों को नशा छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे. इस नियम का यहां कड़ाई से पालन होता है. अखाड़े में आने से पहले पहलवानों को नशा छोड़ने का संकल्प लेना पड़ता है. अखाड़े के मुख्य कोच व मुखीराम हाइस्कूल, थावे से रिटायर शिक्षक पुण्यदेव चौधरी बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 1960 में 10वीं की परीक्षा पास की. उसी समय कुश्ती लड़ने की ललक जगी और गांव के एक पोखर के किनारे अखाड़ा तैयार किया गसर.
इसके बाद काफी संख्या में उनके सहपाठी भी अखाड़े में लड़ने लगे. उसी समय से शुरू हुई कुश्ती का सिलसिला आज भी जारी है. वर्तमान समय में इसी अखाड़े के पहलवान राजीव कुमार जिला केसरी हैं और इससे पहले कई पहलवान राज्य व देश स्तर पर कई पुरस्कार जीत चुके हैं.
चंदे से बनायी व्यायामशाला : अखाड़े को किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली है. फिर भी यहां के लोग कुश्ती के लिए काफी जागरूक व उत्साहित हैं. गांव के लोगों ने चंदे से ही यहां निजी व्यायामशाला का निर्माण कर दिया.
इस व्यायामशाला में पहलवान तरह-तरह के व्यायाम भी करते हैं. इसके अलावा गांव के बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ कुश्ती को भी काफी महत्व दिया जाता है. छोटे बच्चे भी यहां आते हैं और अखाड़ा देखते हैं. बड़े होने पर उन्हें पहलवान बनने का मौका भी दिया जाता है.
पहलवान पर एक महीने में खर्च होते हैं 15-20 हजार रुपये : मुख्य कोच बताते हैं कि एक पहलवान के शरीर के समुचित रखरखाव में करीब 15 से 20 हजार रुपये प्रति माह खर्च होते हैं. बाहरी जगहों पर जाकर कुश्ती लड़ने में भी काफी खर्च करना पड़ता है. कुछ सक्षम पहलवान तो उक्त राशि खर्च कर लेते हैं, लेकिन गरीब पहलवान की प्रतिभा इसी मोड़ पर आकर दम तोड़ देती है. प्रशासनिक व जनप्रतिनिधियों का उचित सहयोग ही पहलवानों का मनोबल ऊंचा कर सकता है. सहयोग मिलने पर देश व विदेश स्तर पर पहलवान अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं.
उचकागांव प्रखंड के श्यामपुर गांव में रोज सजता है अखाड़ा
लोगों को मिला रोजगार
अखाड़े से जुड़ा कोई भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं है. मुख्य कोच के पुत्र डॉ अरविंद यादव बताते हैं कि अखाड़े से जुड़े करीब दो दर्जन से अधिक लोग कुश्ती की बदौलत सेना, बीएसएफ व बिहार पुलिस में हैं. पहलवान रामाजी चौधरी कुश्ती से ही बिहार पुलिस के दारोगा बने और कई पहलवान शिक्षा व चिकित्सा विभाग में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं.

Next Article

Exit mobile version