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पीड़ितों ने झोंपड़ी बहने के बाद महासेतु पर ली शरण

गोपालगंज : साहब! मत पूछिए, ऐसी जिंदगी ईश्वर दुश्मनों को भी न दे. खेती-किसानी में लगी पूंजी डूब गयी. पाई-पाई जतन करके एक झोंपड़ी बनायी थी, बाढ़ में वह बह गयी. घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा. सब कुछ बर्बाद हो गया. यह पीड़ा है सदर प्रखंड के नवादा गांव के दिव्यांग […]

गोपालगंज : साहब! मत पूछिए, ऐसी जिंदगी ईश्वर दुश्मनों को भी न दे. खेती-किसानी में लगी पूंजी डूब गयी. पाई-पाई जतन करके एक झोंपड़ी बनायी थी, बाढ़ में वह बह गयी. घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा. सब कुछ बर्बाद हो गया. यह पीड़ा है सदर प्रखंड के नवादा गांव के दिव्यांग विष्णु की पत्‍‌नी बिंद्रावती की. बाढ़ से उजड़ जाने के बाद पति व चार बच्चों के साथ उसने बेतिया-गोपालगंज महासेतु की सड़क पर शरण ले रखी है.
वह कहती है कि उसकी बेटी स्नेहा, शिल्पा, बेटा-आर्यन और प्रिंस पूछते हैं कि मां फिर कैसे खड़ी होगी झोंपड़ी. बच्चों की यह बात कलेजे को चुभती है. वे छोटे हैं. कमाने लायक भी तो नहीं. झोंपड़ी में रखा गेंहू-चावल व दाल कुछ नहीं बचा. पानी आते ही मवेशियों को लेकर जान बचा कर गांव से भागे थे. जान तो बच गयी, लेकिन पांच परिवार का बोझ लेकर जिंदगी बोझिल हो गयी है. अब तक कोई सरकारी मदद भी तो नहीं मिली है.
किस्मत पर माथा पीटने को मजबूर : यही हाल गम्हरिया की मुन्नी देवी का है. वह कहती है कि बाढ़ के पानी ने किसी को संभलने का मौका ही नहीं दिया. मवेशियों और पति के साथ भाग कर जान बचायी.
झोंपड़ी के साथ ही उसमें रखा कपड़ा, अनाज व जरूरत का सामान बह गया. छह दिनों से दूसरों के रहमोकरम पर गुजारा कर रही हूं. घर के अनाज सड़ गये हैं. आगे क्या होगा राम जाने. कुछ ऐसा ही हाल गांव के अन्य गरीब परिवारों का है. बाढ़ का पानी धीरे-धीरे निकल रहा है. लोग अपने घरों को लौट रहे हैं. पानी कम होने के साथ ही तबाही का मंजर भी दिख रहा है. घर में अनाज का एक दाना भी न देख वे अपनी किस्मत पर माथा पीटने को मजबूर हैं.
अब भी बना है डर : गंडक नदी का पानी कम होने के बाद भी लोग डरे हैं. कहीं दोबारा बाढ़ लौट न आये. जिंदगी को पटरी पर लाने की उनकी जद्दोजहद शुरू हो गयी है.परिवार के लोग बाढ़ में बचे हुए सामान बचाने की जुगत में लगे हुए हैं. इसमें प्रकृति भी लगातार उनका साथ दे रही है. पानी निकलने के बाद लगातार धूप खिलने से लोगों को राहत मिल रही है.

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