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पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व श्राद्ध पक्ष आज से
गोपालगंज : पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व श्राद्ध पक्ष बुधवार से शुरू होगा. शास्त्रों के अनुसार तीन ऋण देव त्रण, त्रषि त्रण व पितृ त्रण बताये गये हैं. पितृ त्रण से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए तर्पण, ब्रम्हा भोज और दान दक्षिण का विधान है. श्राद्ध के माध्यम से पितृ त्रण को […]
गोपालगंज : पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व श्राद्ध पक्ष बुधवार से शुरू होगा. शास्त्रों के अनुसार तीन ऋण देव त्रण, त्रषि त्रण व पितृ त्रण बताये गये हैं. पितृ त्रण से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए तर्पण, ब्रम्हा भोज और दान दक्षिण का विधान है. श्राद्ध के माध्यम से पितृ त्रण को उतारा जा सकता है. पं डॉ पंकज शुक्ला के अनुसार श्राद्ध श्रद्धा से होना आवश्यक है, क्योंकि शास्त्रों पितरों को देवताओं से भी उच्च स्थान दिया गया. पितृ दोष हो जाये तो व्यक्ति को परिश्रम करने पर भी सफलता नहीं मिलती. परिवार में कलह, आय से अधिक खर्च आदि पितृ दोष के कारण हो सकते हैं. श्राद्ध पक्ष के कुछ नियमों का पालन करने पर पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद भी देते हैं. ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध अपने घर में और अपराह्न काल में ही करना चाहिए. श्राद्ध में क्रोध और जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.
इस बार श्राद्ध पक्ष में एक तिथि क्षय होने से कुछ पंचांगों में श्राद्ध पक्ष 14 दिनों के भी बताये गये हैं.
यहां हैं श्राद्ध की तिथियां
छह सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध, सात सितंबर को द्वितीया श्राद्ध, आठ सितंबर को तृतीया श्राद्ध, नौ सितंबर को चतुर्थी श्राद्ध, 10 सितंबर को पंचमी श्राद्ध, 11 सितंबर को षष्ठी श्राद्ध, 12 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध, 13 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध, 14 सितंबर को नवमी श्राद्ध, 15 सितंबर को दशमी श्राद्ध, 16 सितंबर को एमादशी श्राद्ध,17 सितंबर को द्वादशी श्राद्ध, 18 सितंबर को त्रयोदशी – चतुर्दशी श्राद्ध, 19 सितंबर को सर्व पितृ व अमावस्या श्राद्ध, 20 सितंबर को मातामह-नन श्राद्ध रहेगा.
तर्पण के दौरान बरतें सावधानी
जिनके पिता का स्वर्गवास हो चुका है उनके लिए छह सितंबर को 12.30 बजे पितृ पक्ष शुरू हो रहा. इस तिथि को दोपहर तक उपवास रख कर अपने पितरों को तर्पण दे सकते हैं. प्रमुख ज्योतिषी बसडिला के रहनेवाले पं प्रभुनाथ मिश्र की मानें, तो गुरुवार को प्रात: उठ कर नहा-धोकर सूर्योदय के समय पूर्वाभिमुख होकर देवताओं को स्मरण करते हुए उन्हें तर्पण करें. उसके पश्चात उत्तर मुख होकर ऋषियों को याद कर उन्हें तर्पण दें. अंत में दक्षिण मुख होकर अपने पितरों को याद करते हुए उन्हें तर्पण दें. तर्पण देने के दौरान कुश, तील, जौ, अक्षत, फूल, जल से तर्पण देने का महत्व है. अंत में सूर्यदेव को अर्घ देकर ही दिनचर्या की शुरुआत करें.
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