गोपालगंज : नाश्ता कर सीपू अपने घर से सुबह दुकान के लिए निकला था. दोपहर 1.30 बजे पत्नी खाने पर इंतजार करती रही. अंत में उसने मोबाइल पर फोन कर खाने के लिए बुलाया. सीपू ने कहा कि मैं नहीं आउंगा, जरूरी काम में हूं. रश्मी यह नहीं समझ पायी की अब सीपू अब कभी लौटने वाले नहीं है. वह बार बार इसे याद कर बेहोश हो जा रही है. सीपू ने शाम 4.30 बजे स्टाप से सब्जी खरीदवा कर भेज दिया और स्टाप जैकेट लेकर दुकान चला गया. रश्मी को क्या पता था कि अब कभी सीपू का साथ नहीं मिल पायेगा.
रश्मी पती के साथ सास-ससुर की सेवा और बच्चों को संभालने में खुश थी. उसके सर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. रश्मी की स्थिति देख सगे संबंधि और रिश्तेदारों का कलेजा फट रहा था. उसे समझाने में सभी लोग लगे हुए थे. पत्नी की चीत्कार से मुहल्ला के लोग रो रहे थे. सीपू अपने पिता के सानिध्य में रह कर यहां कारोबार कर रहा था.
छोटे बेटे की मौत से उसकी मां सुबिरा देवी बेशुध पड़ी हुई थी. उसके आंखों से आंसू सुख गयी थी. सुबीरा बार-बार बहू और बच्चों की ओर देख कर बेशुध हो जा रही थी. सुबीरा के सामने उसके कलेजे के टूकड़े का शव पड़ा हुआ था. मां पूरी तरह से टूट चुकी थी. परिजनों को समझाने में गांव और पड़ोसी लोग लगे हुए थे.