संकट. टैंकों में भरा है दो लाख टन छोआ, उठाव नहीं होने से अगले सत्र की पेराई प्रभावित
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चीनी मिलों में पेराई पर मोलासिस का ”ग्रहण”
संकट. टैंकों में भरा है दो लाख टन छोआ, उठाव नहीं होने से अगले सत्र की पेराई प्रभावित शराबबंदी एक्ट 2016 के लागू होने के बाद आया संकट डिस्टलरी फैक्टरियां नहीं उठा रहीं आवंटित मोलासिस सरकार के स्तर पर नहीं हुई पहल तो मिलों में लगेंगे ताले गोपालगंज : चीनी मिलों की पेराई पर मोलासिस […]
शराबबंदी एक्ट 2016 के लागू होने के बाद आया संकट
डिस्टलरी फैक्टरियां नहीं उठा रहीं आवंटित मोलासिस
सरकार के स्तर पर नहीं हुई पहल तो मिलों में लगेंगे ताले
गोपालगंज : चीनी मिलों की पेराई पर मोलासिस (छोआ) का ग्रहण लग गया है. चीनी मिलों की टैंक मोलासिस से भरे हुए हैं. मोलासिस का उठाव नहीं होने के कारण अगला पेराई सत्र प्रभावित हो सकता है. आर्थिक संकट से जूझ रही चीनी मिलों में मोलासिस डंप होने के कारण उसका पैसा भी नहीं मिल रहा. चीनी मिलों के संकट से किसान भी अछूते नहीं हैं. किसानों के बकाये पर्चियों का भुगतान नहीं हो पा रहा. अकेले गोपालगंज के विष्णु शुगर मिल में मोलासिस रखने के लिए चार टैंक बने हुए हैं, जिनमें दो लाख क्विंटल मोलासिस भरा हुआ है. इतना ही नहीं, मोलासिस अधिक होने पर एक लाख क्विंटल मोलासिस को खुले में मिट्टी में रखा गया है,
जो बारिश आते ही या तो बह जायेंगे या बर्बाद हो जायेंगे. विष्णु शुगर मिल की तरफ से स्टेट लेवल की बैठक में इस मुद्दे को उठाया जा चुका है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है. विष्णु शुगर मिल के मोलासिस के उठाव के लिए रीगा डिस्टलरी को आवंटित किया गया है. रीगा डिस्टलरी को 32 हजार क्विंटल मोलासिस का उठाव करना है.
बंद हो जायेंगी चीनी मिलें
विष्णु शुगर मिल के महाप्रबंधक पीआरएस पाणिकर की मानें तो इस वर्ष चीनी मिल का क्रॉसिंग अधिक होने के कारण मोलासिस अधिक हुआ है. उसका उठाव नहीं हुआ तो चीनी मिल का सत्र नहीं चल पायेगा. मोलासिस को कहीं फेंका नहीं जा सकता. सरकार के स्तर पर ठोस नीति बनाने की जरूरत है, ताकि मोलासिस का उपयोग हो सके.
शराबबंदी के कारण उत्पन्न हुई समस्या
बिहार में शराबबंदी एक्ट 2016 लागू होने के बाद डिस्टलरी कंपनियां शराब बनानी बंद कर दीं. वैसे गोपालगंज के सोनासती ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड, बेतिया की हरिनगर नरकटियागंज, सीतामढ़ी की रीगा डिस्टलरी कंपनी में शराब की जगह इथनॉल बनाया जाने लगा. चीनी मिलों से निकलने वाले मोलासिस की खपत महज 20 फीसदी हो गयी. चीनी मिलों से निकलने वाले मोलासिस से रैक्टीफायट स्पिरिट तैयार होती थी, जिससे देसी शराब बनाने में आसानी होती थी. अब बिहार में शराब बनाने पर प्रतिबंध लग चुका है. नतीजा है कि मोलासिस चीनी मिलों में बेकार पड़े हुए हैं.
कैसे पेराई को करेगा प्रभावित
चीनी मिल की पेराई से निकलने वाले मोलासिस (छोआ) को रखने के लिए चीनी मिलों में बनाये गये टैंक भरे हैं. मोलासिस रखने के लिए जगह नहीं है. पेराई शुरू होती है तो मोलासिस कहां रखा जायेगा. बाहर खुले में मोलासिस को नहीं रखा जा सकता, क्योंकि उससे निकलने वाली बदबू पर्यावरण के दृष्टिकोण से खतरनाक साबित हो सकता है. समय पर मोलासिस का उठाव नहीं होने से टैंक की सफाई भी नहीं हो पा रही, जो आने वाले पेराई सत्र को प्रभावित कर देगा.
दूसरे प्रदेश में मोलासिस बेचने की अनुमति नहीं
जानकार बताते हैं कि चीनी मिलों को मोलासिस दूसरे प्रदेश में बेचने की अनुमति नहीं है. कई बार चीनी मिलों की तरफ से सरकार से यह मांग की जा चुकी है कि मोलासिस बेचने की अनुमति अन्य प्रदेशों में दी जाये. यह मामला उत्पाद विभाग के अधीन लंबित है. जब बिहार में शराब बनाया जाता था तो अन्य प्रदेशों से मोलासिस मंगाना पड़ता था. ऐसे में सरकार को ठोस नीति बनाने की जरूरत है.
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