धान से भरा है गोदाम, नहीं हो रही खरीदारी

अधिसंख्य किसानों के धान का नहीं हो सका भुगतानगोपालगंज : क्या करें, कर्ज चुकाने की विवशता है. मंडी में भले ही गेहूं के भाव समर्थन मूल्य से कम है, लेकिन अधिकतर किसान अपना गेहूं व्यापारियों से बेच रहे हैं. गेहूं क्रय केंद्र 15 अप्रैल से 31 जुलाई तक के लिए कागजों पर खरीदारी के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:31 PM

अधिसंख्य किसानों के धान का नहीं हो सका भुगतान
गोपालगंज : क्या करें, कर्ज चुकाने की विवशता है. मंडी में भले ही गेहूं के भाव समर्थन मूल्य से कम है, लेकिन अधिकतर किसान अपना गेहूं व्यापारियों से बेच रहे हैं.

गेहूं क्रय केंद्र 15 अप्रैल से 31 जुलाई तक के लिए कागजों पर खरीदारी के लिए खुला है, लेकिन हकीकत यह है कि गोदाम में जगह नहीं रहने के कारण गेहूं खरीदारी शुरू नहीं की गयी है. भारतीय खाद्य निगम की मनमानी के कारण एसएफसी का गोदाम आज भी धान से भरा हुआ है.

पैक्स को 32 हजार मिटरिक टन व एसएफसी को आठ हजार मिटरिक टन गेहूं खरीदारी करने का लक्ष्य दिया गया है. एसएफसी में आज तक गोदाम भरे होने के बहाना बता कर खरीदारी नहीं शुरू की गयी है. वहीं पैक्स को आज तक धान के भुगतान नहीं मिला है.

इसके कारण हजारों किसान धान देकर भुगतान के लिए पैक्स का चक्कर लगा रहे हैं. गेहूं का समर्थन मूल्य 1350 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि, मंडी में 1200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीदारी हो रही है. सोमवार को मंडी में गेहूं की बोली 1210 से 1250 रुपये प्रति क्विंटल तक लगी.

तुरंत मिलता है आढ़त से पैसा

आढ़त से कर्ज लेनेवाले किसानों का कहना है कि बैंक से फसली ऋण सिर्फ एक बार मिलता है, लेकिन आढ़तियों के यहां से जब उनको जरूरत पड़ती है, कर्ज मिल जाता है. इसके लिए उनका चक्कर भी नहीं लगाना पड़ता. इसका भुगतान उनके यहां फसल बेच कर दिया जाता है. आढ़तियों के दलाल भी है.

वे किसानों से अपने कर्ज का भुगतान कराने के लिए इन्हीं दलालों की मदद लेते हैं. वे गांव-गांव जाकर किसानों से संपर्क करके पता करते हैं कि उनकी फसल खलिहान से कब उठ रही है. फसल उठते ही वे कसान को सीधे आढ़त पर ले जाने के लिए कहते हैं किसान भी वायदे के अनुसार फसल उनके यहां बेच देते हैं.

खेतों में कर रहे सौदे

दलाल आढ़तियों के लिए खेतों में ही फसल का सौदा कर रहे हैं. खेत में ही किसान को उतनी रकम दी जा रही है, जितनी उसे मंडी मे ले जने पर मिलती है. इससे किसानों को परेशानी भी नहीं होती है.
– अवधेश कुमार राजन –

Next Article

Exit mobile version