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कवि हिंदू-मुसलिम नहीं, इनसान होते हैं : वाहिद अली

कवि हिंदू-मुसलिम नहीं, इनसान होते हैं : वाहिद अलीफोटो 08कटेया. कवि वाहिद अली वाहिद ने कहा कि साहित्य धर्म नहीं इनसानियत की बात करता है. इसलिए कवि हिंदू-मुसलिम नहीं इनसान होता है. सबसे पहले राष्ट्र जरूरी है, फिर अपनी संस्कृति. यह दोनों बचा रहे, तो साहित्य को फलने-फुलने का मौका मिलता है. यही कारण है […]

कवि हिंदू-मुसलिम नहीं, इनसान होते हैं : वाहिद अलीफोटो 08कटेया. कवि वाहिद अली वाहिद ने कहा कि साहित्य धर्म नहीं इनसानियत की बात करता है. इसलिए कवि हिंदू-मुसलिम नहीं इनसान होता है. सबसे पहले राष्ट्र जरूरी है, फिर अपनी संस्कृति. यह दोनों बचा रहे, तो साहित्य को फलने-फुलने का मौका मिलता है. यही कारण है कि कोई कवि धर्म की नहीं मानवता की बात करता है. ‘नेक बन इनसान बन जाइए, राम के संग रहमान बन जाइए, हर तरफ दानवों की सभा हो रही, शक्ति के पुंज हनुमान बन जाइए’ . आज देश की सबसे बड़ी समस्या सांप्रदायिकता है, कि ंतु साहित्य एवं साहित्य पे्रमी ही इस समस्या से छुटकारे के साधन हंै. साहित्यकार अपना कार्य कर रहे हंै. समाज को आगे आने की आवश्यकता है, वरना देश टुकड़ों में बंट जायेगा. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरे आदर्श रहीम एवं रसखान हंै, जिन्होंने हिंदू-मुसलिम एकता की मजबूत नीव रखी है. हमारा काम इस नीव पर भारत मां का विशाल मंदिर बनाना है, जिसमें सभी धर्मों के लोग एक साथ इबादत कर सकें. उन्होंने कहा कि ‘कृष्ण की बांसुरी वृंदावन चाहिए, अब तिरंगा लगा हर सदन चाहिए, टुकड़े-टुकड़े जमी होने देंगे नहीं, हमको सारा का सारा चमन चाहिए’.

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