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होलिका जलाएं, हरियाली नहीं

गोपालगंज. प्रेम, भाईचारा व कटुता को मिटा देनेवाली होली शुक्रवार को मनायी जायेगी. गुरु वार को होलिका दहन है. होलिका बुराई की प्रतीक है, जिसे जला कर हम खुशियों का त्योहार मनाते हैं. होलिका के साथ ही हम कटुता, बैर, कलह, भेदभाव व मनमुटाव भी जलाते हैं. होलिका जलाना हमारी परंपरा है, तो हरे वृक्ष […]

गोपालगंज. प्रेम, भाईचारा व कटुता को मिटा देनेवाली होली शुक्रवार को मनायी जायेगी. गुरु वार को होलिका दहन है. होलिका बुराई की प्रतीक है, जिसे जला कर हम खुशियों का त्योहार मनाते हैं. होलिका के साथ ही हम कटुता, बैर, कलह, भेदभाव व मनमुटाव भी जलाते हैं. होलिका जलाना हमारी परंपरा है, तो हरे वृक्ष हमारी विरासत हैं, जीवन हैं, खुशियां हैं. हर कीमत पर इन्हें बचाने की कोशिश होनी चाहिए. यह ध्यान रखना पड़ेगा कि होलिका जले, लेकिन हरियाली नहीं. पर्यावरणविद राजू चौबे की मानें, तो होलिका में सूखी लकडि़यां व गोबर के उपले जलाने की पुरानी परंपरा है. ये दोनों चीजें हरे वृक्षों से कम कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्पन्न करती हैं. यानी हरे वृक्षों को जलाना ज्यादा खतरनाक है, देर तक जलते हैं और देर तक धुआं यानी कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़ते हैं. दोहरा नुकसान हुआ. एक तो हमें ऑक्सीजन प्रदान करने का एक संसाधन नष्ट हो गया और दूसरे उसके जलने से वातावरण में अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड व्याप्त हो जायेगा.

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